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________________ तत्त्वश्रद्धानमेतच गदितं जिनशासने॥ सर्वे जीवा न हंतव्याः सूत्रे तत्त्वमितीष्यते ॥६॥ ___ अर्थ-जेम आंखमां कीकी सारभूत छे, फूलमां सुगंध सारभूत छे तेम सर्व धर्मक्रियामां सम्यक्त्व ते सारभूत कयु छे ॥५॥ जिनशासनने विषे जे तत्वनी श्रद्धा करवी तेहने सम्यक्व कयुं छे, अने कोई पण जीवने हणवो नही तेने सूत्रपां तत्र कह्यु छे ॥ ६॥ शुद्धो धर्मोऽयमित्येतद्धर्मरुच्यात्मकं स्थितं ॥ शुद्धानामिदमन्यासां रुचीनामुपलक्षणं ॥७॥ अथवेदं यया तत्त्वमाज्ञयैव तयाखिलं ॥ नवानामपि तत्त्वानामिति श्रद्धोदितार्थतः ॥ ८॥ अर्थ-जे शुद्ध धर्म ते ए धर्मरुची नामा सम्यक्त्वनेज कहिये अने ए मध्ये उपलक्षणथी बीजी पण शुद्ध पदार्थनी रुचीओ प्रगटे छे ॥ ७ ॥ अथवा ए सम्यक्त्व ते प्रभु आज्ञारूप तत्त्वे प्रगटे छे. ते तच तो जीवादिक नव प्रकारे छे, तेनी जे श्रद्धा ते सम्यक्त्व जाणवू ॥ ८ ॥ इहैव प्रोच्यते शुद्धाऽहिंसा वा तत्वमित्यतः॥ सम्यक्त्वं दर्शितं सूत्रप्रामाण्योपगमात्मकं ॥९॥ शुडाऽहिंसोक्तित: सूत्रप्रामाण्यं तत एव च ॥ .. अहिंसाशुद्धधीरेवमन्योऽन्याश्रयभीर्न तु ॥१०॥ अर्थः—बली इहां तत्त्व ते अहिंसारूप शुद्ध तत्त्व छे. ते तत्र शुद्धाचार प्रमाणे विचारीए, तेवारें आत्माने अभिन्नस्वरूपे सम्यक्त्व देखाडयुं छे ।। ९ ॥ अने शुद्ध अहिंसा कही ते
SR No.023433
Book TitleAdhyatmasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Veervijay
PublisherAdhyatmagyan Prasarak Mandal
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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