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अने अविद्यादिकवादी जे परदर्शनी तेनो पण आ मार्ग छे, एटले पूर्वे कह्यो ते मार्ग छे. जो के नामादिक भेदे करी कदापि जुदा छे तोपण तत्त्व रीते जोतां एकज व्यवस्था छ । ६८ ॥ मुक्तोबुद्धोऽहश्चापि यदैश्वर्येण समन्वितः।।
तदीश्वरः स एव स्यात्संज्ञाभेदोऽत्र केवलं ॥३९॥ अनादिशुद्ध इत्यादियों भेदो यस्य कल्प्यते ॥ तत्तत्तंत्रानुसारेण मन्ये सोऽपि निरर्थकः ॥ ७० ॥
अर्थ:-ते व्यवस्था कही देखाडे छे. कोई दर्शनी मुक्त कहे छे कोई बुद्ध कहे छे, कोइक अर्हत कहे छेकोइक ऐश्वर्ययुक्त एटले ईश्वर कहे छे, ए सर्व सर्वज्ञनी संज्ञाना भेद छे; बीजुं नथी ।। ६९ ॥ तेमज वली अनादिशुद्ध ईश्वर छे इत्यादिक भेद जे परदर्शनीओ कल्पे छे, ते भेद सिद्धांतने अनुसारे विचारीए तो मानवा पण निरर्थक छे ॥ ७० ॥ विशेषस्यापरिज्ञानाद युक्तीनां जातिवादिनः ॥
प्रायो विरोधतश्चैव फलाभेदाच भावतः ॥७१॥ अविद्याक्लेशकर्मादि यतश्च भवकारणं ॥
ततः प्रधानमेवैतत्संज्ञाभेदमुपागतं ॥७२॥ ___अर्थ:-केमके जे विशेषने नहि जाण्याथी, उक्तियुक्तिना जातिवचनथी अने प्राये विरोधथकी भावथी फलनो अभेद छे, ए हेतु माटे ॥ ७१ ।। जे अविद्या, क्लेश अने कर्म इत्यादिक जे संसारना कारण प्रगटे, ते केटलाएक दर्शनीओ जुदा जुदा कहे छे. एटले कोई अविद्या, कोई क्लेश, कोई कर्म, एम संज्ञाये करी भेद कहे छे, पण ए त्रणे प्रधानपणे एकज छे ।। ७२ ॥