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११० सूक्ष्म स्थितिमां स्थिरदर्शन न संभवे ॥ २१ ॥ जेम मदिराना अंगथकी मदशक्ति प्रगटपणे नथी, पण भेगे मलवे थाय छे, अथवा पीधा पछी आत्माने संयोगे थाय छे तेम ज्ञाननी प्रगटता पण आत्माने योगे थाय छे नहीं तो सदाय एकलं ज्ञान रहेवू जोइए ॥ २२ ॥ राजरंकादिवैचित्र्यमप्यात्मकृतकर्मजं ॥ सुखदुःखादिसंवित्तिविशेषो नान्यथा भवेत् ॥२३॥ आगमाद्गम्यते चात्मा दृष्टेष्टार्थाविरोधिनः ॥
तद्वक्ता सर्वविच्चैनं दृष्टवान्वीतकश्मलः ॥ २४ ॥ ___अर्थ:-आ राजा छे अने आ रांक छे, एवो जीवने विचित्र भाव उपजे छे एवी लोकवाणी छे ते सर्व पोतानां कीधेलां कर्मथकी जाणवी. सुखदुःख सर्व कर्मथकी प्रगट थाय छे, अन्यथा बीजुं विशेष कारण कांई नथी ॥ २३ ॥ जे दृष्टिये दी? ते प्रत्यक्षप्रमाण अने इष्टार्थ ते अनुमान प्रमाण, तथा उपमाप्रमाण ते अनुमानमां भले छे; माटे ए त्रण प्रमाणने अविरोधी एहवू जे आगमप्रमाण तेणे करी आत्माने जाण्यो जाय छे. ते आगम तो जेनां सर्व पाप गयां छे एहवा सर्वज्ञ देवे देखाडयुं छे ॥ २४ ॥ अभ्रांतानां च विफला नामुष्मिक्यः प्रवृत्तयः॥
परबंधनहेतोः कः स्वात्मानमवसादयेत् ॥२९॥ सिद्धिः स्थाण्वादिवद्वयक्ता संशयादेव चात्मनः॥ असौ खरविषाणादौ व्यस्तार्थविषयः पुनः ॥२६॥ अर्थः-अभ्रांत जे ज्ञानी पुरुष तेने हमणानी प्रवृत्ति ते