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________________ १०४ हिंसाप्युत्तरकालीनविशिष्टगुणसंक्रमात् ॥ त्यकाविध्यनुबंधत्वादहिंसैवातिभत्कितः ॥१५॥ ईदग्भंगशतोपेताऽहिंसा यत्रोपवर्ण्यते ॥ सर्वाशपरिशुद्ध तत्प्रमाणं जिनशासनं ॥५६॥ ___ अर्थ:-जे हिंसा छे ते पण जो उत्तरकाले विशिष्टगुण प्रगटे, तथा अविधिनो अनुबंध तज्याथी अने अत्यंत भक्तिथकी प्राणीने अहिंसारूपज फलदायक थाय छे ॥ ५५॥ ए रीते सेंकडो गमे भंगजाल सहित जिहां अहिंसाने वर्णविये ते तो सर्वाशे शुद्ध एवं जे जिनशासन तेमांज प्रमाण छे ।। ५६ ॥ अर्थोऽयमपरोऽनर्थ इति निर्धारणं हृदि ॥ आस्तिक्यं परमं चिन्हें सम्यक्त्वस्य जगुर्जिनाः॥५७॥ शमसंवेगनिर्वेदानुकंपाभिः परिष्कृतं ॥ दधतामेतदविच्छिन्नं सम्यक्त्वं स्थिरतां व्रजेत् ॥१८॥ अर्थ:-अहिंसा तेज अर्थ छे अने बीजा सर्व अनर्थ छे, ए प्रकारे जेना मनमा धारणा छे एहवी परम आस्था प्रगटे ते आस्था श्रद्धारूप समकितनुं चिह्न छे, एवं प्रभुए कह्यु छे ।।५७।। समता, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा ए लक्षणो रुडी रीते अविच्छिन्नपणे धरतां थकां समकित जे छे ते स्थिरतापणाने पामे ॥ ५८ ॥ इति सम्यक्त्वाधिकारः द्वादशः समाप्तः ॥ :
SR No.023433
Book TitleAdhyatmasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Veervijay
PublisherAdhyatmagyan Prasarak Mandal
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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