SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कारेछे. शब्दना अश्रवणयी शब्दनय अर्थने अंगीकार करतो नयी. अने अवक्तव्य तो शब्दाभाव विषयछे. १६१ प्रत्यक्ष अने परोक्ष एबे भेद प्रमाणना छे. अविसंवादि ज्ञानने परोक्षज्ञान कहे छे. विवादास्पद न होय तेने अविसंवादि कहेछे. जेमां आ ज्ञान सत्य छे के असत्यछे एवो विवाद न उठे ते अविसंवादि कहेवायछे. अने जे ज्ञानमा स्पष्ट विषय नथी भासतो ते अविशद कहेवाय छे. दृष्टांत तरीके अनुमानथी गृहमाण अग्नि पर्वतमा स्पष्ट नथी देखातो माटे पर्वतोवन्हिमान् ए ज्ञान अविशद कहेवायछे. इमौ दौ चन्द्रौ ए ज्ञानछे ते विसंवादिछे अने अविसंवादिछे. चंद्रनिष्ट द्वित्व संख्यामा भ्रांतिथी विसंवादिछे अने चंद्रज्ञानथी अविसं. बादीछे. द्वौचन्द्रौ आ बे प्रकारना ज्ञानमा अविसंवादिज्ञान प्रमाणछे अने संवादिज्ञान अप्रमाणछे. १५९ मति, भुत, परोक्षपमाणछे. अवधि, मनापर्यव, अने केवलज्ञान. : मत्सत ममाण के. १६३. मुख्यव्यवहारथी मति, परोक्षप्रमाण कहेवायचे. अने लौकिक ... व्यवहारथी चक्षुरादिजन्यमतिज्ञान विशदछे माटे तेने
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy