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तत्वविन्दुः,
१५४ सप्तभंगीमां आधनी त्रण सकलादेशी होवाची निर्षिकालकके.
कारण के विकल्परूप अवयवने आधनी अणभंगी बाण करती नथी. बाकीनी चार विकलादेशी होवाथी सविकल्पक कहेवाय छे.
१५५ अर्थनय जे संग्रह, व्यवहार,अने रुजु सूत्रमा सप्तभंगी प्रथम कही.
हवे शब्दनय जे शब्द, समभिरूढ अने एवंभूतनय छे तेमां स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति ए बे भंगी घटे छे. शब्द तथा समभिरूढ ए बे नयमां स्यात् अस्ति पहेली भंगी घटे छे. कारण के स्यात् अस्ति प्रथम भंगीनो मूल एक द्रव्य विषय छे. तथा शब्द अने समभिरूढनय पण संज्ञा, क्रियानो भेद छतां पण अभिन्न अर्थने प्रतिपादन करे छे एवंभूतनयमां बीजी भंगी घटे छे.
१५६ अर्थने आश्रीने वक्ताना हृदयमा रहेलो संग्रह, व्यवहार, रुघु
सूत्रनय कथित अभिप्राय तेने अर्थनय कहेछे. वस्तुसंबंधयी ज्ञान थायछे माटे तेने अर्थनय कहेछे. अर्थनयमांअर्थनी प्रधानताछे. तेमां शब्द- उच्चारण थायछे. पण शब्दनी गौणताळे.
१५७ श्रोताना हृदयमां शब्दश्रवणथी शब्द,समभिरूड,अने एवंभूतमय .