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___ तस्वबिन्दुः . . (१९) . भावार्थ-काले सुपात्र दान देवू. सम्यक्त्व विशुद्धि, अने बोधिवीजनी प्राप्ति, अने अन्त्यसमाधिमरण, अभन्यजीवो पामी शकता नथी.
१३२ व्यवहारराशिया जे बादरनिगोदमां अनंताछे. ते फरी कर्मनी
बाहुल्यताए सूक्ष्मनिगोदगोलकमां जाय त्यां रही वळी पाछा कंदादिकसाधारण वनस्पतिमां आवे एम संबंधे सूक्ष्मनिगोदना बादरनिगोदमाआवे. वळी बादरना सूक्ष्ममां जाय, एमबेस्थानके
आवागमन करतांजीव त्यां उत्कृष्ट रहेतो अढीपुद्गलपरावर्त पर्यंत ;:. रहे. पश्चात् पृथिव्यादिक स्थानक स्पर्शतो उंचो आवी मनुष्य .. थाय, व्यवहारराशियो भव्यजीव सामग्री पामी सिद्धिवरे तथा
घली एम कांछे के कंदमूलसाधारणमाथी जीव सूक्ष्मगोलकमा जायतो अने उत्कृष्ट काल रहे तो असंख्यात काल पर्यंत सूक्ष्मनिगोदगोलकमांहि रहे त्यांथी नीकळी वादरनिगोद कंदमूलमां उत्कृष्ट सित्तर कोडाकोडी सागरोपमपर्यंत ज्यारे ज्यारे सूक्ष्मनिगोदमांथी आवे त्यारे रहे एम संबंध छे. उत्कृष्ट अढीपदल परावर्तपर्यंत व्यवहारराशियो जीव निगोदमां रहे.
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गाथा.
चत्तारियवारा, चउदस पुव्वी करेइ आहार संसारमि वसंतो, एगभवे दुनिवारा .
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