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तणधिन्दु.
नव जाणवा. मूक्ष्म संपराय चारित्रमा मूल हेतु वे अवे उत्तर हेतु दश, तेमां एक संज्वलननो लोभ अने नव योम जाणवा. • यथाख्यात चारित्रमा मूळ हेतु कर्म बंधनमां एक छे. अने उत्तर हेतु अगियार....
__ श्लोक. यथा प्रकारा यावन्तः संसारावेशहेतवः तावन्तस्तद्विपर्यासा, निर्वाणावेशहेतवः ॥१॥ जे प्रकारना जे जे संसारना हेतुओछे तेज विपर्यासपणाने पामेला मुक्तिना हेतुओछे. जे जे कर्म बंधना हेतुओछे ते तेज कर्म नाशना हेतुओछे.
६३७ संप्रति निश्चय समकित प्रगटी शकेछे अने तेना हेतुओछे.
६३८ हे त्रिशलानन्दन वीराधिवीर !!! व्यवहार चारित्र स्वीकारी - तमोए तेमा एकांतवास सेव्यो. तेमां निःसंगतानी मुख्यताए
ध्यानमां निमग्नताज मुख्य उद्देश संभवे छे.
६३२ अज्ञानिने सहुथी बुरी एकान्त, ज्ञानयुक्त ध्यानीने सहुथी
शूरी एकान्त.
६५० ध्यानमा विनकारक, भय अने लज्जानो परिहार कर.