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तत्वविन्दुः ।
६३१ श्रेणियमा वर्तमान वेदक, अकषायक, एवा केटलाकने अव3 धिज्ञान उत्पन्न थाय छे. जेओने अवधिज्ञान उत्पन्न थयुं नथी १ एवा मति श्रुत चारित्रवाळाओने प्रथम सातमा गुण स्थानकमां मनःपर्यव ज्ञान उत्पन्न याय छे तेवा मनःपर्याय ज्ञानियो पण केटलाक पाछळथी अवधि ज्ञानना अंगीकार करनाराओ थायछे. (वि.)
६३२
उदय खय खउँवसमो, बसम समुथ्था बहुप्पगाराउ एवं परिणामवसा, लकी होति जीवाणं १ उदय, क्षय, क्षयोपशम, उपशमी थएली बहु प्रकारवाली लहियो, परिणामवशे जीवोने उत्पन्न थायछे. (वि.)
६३३ रुजुमति अने विपुलमति अभव्य पुरुष अने स्त्रीने पण होय
नहीं. (वि).
६३४ चक्रवर्ति, वासुदेव, बलदेव, प्रतिवासुदेव, ए भव्य होय छे
अने अर्ध पुद्गल परावर्तनकालमा मुक्ति जायछे..
६३५ सामायक चारित्रमा कर्म बंधमांमूल हेतु बे. छे, अने उत्तर हेतु .. छव्वीशछे. तेर योग अने तेर कषाय ॥ छेदोपस्थापनीयतुं पण
ते प्रमाणे जाणवू. परिहार विशुद्धि चारित्रमा कर्म बंधावाना मूल हेतु बे अने उत्तर हेतु एकवीश. बार कपाय तेमा स्त्री वंद विना आठ नोकषाय, अने चार संज्वलनना तेमज योग: