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________________ (१८) तस्वधिन्दु. २९० क्षायिक वेदक समकित गर्भज-मनुष्यना पर्याप्ताना पन्नरभे..: दमां पामीए-छप्रकृतिनो क्षायिकभावे क्षय करे, अने समकि..: तमोहनीयना चरमदलिक एक समये वेदीने क्षायिक पामे तेने क्षायिकवेदक समाकित कहेछे-नरकगति, तिर्यंचगति अने देवतानीगति ए त्रणगतिमां परभवन आवलं क्षायिक समकित होय. २९१ सास्वादन सम्यक्त्व-मनुष्यना बसेनेबेभेद गर्भज पर्याप्ता अने अपर्याप्ता-देवताना एकशोसित्तेर भेदमा पर्याप्ता अने अपप्तिावस्थामां पामीए. नवलोकांतिक अने पांच अनुत्तरविमानना देवोमां सास्वादन समकित न पामीए. नरकगतिमां सात पर्याप्त भेदमां पामीए. तिर्यंचगतिमा एकवीश भेदमा समकित पामीए. पांचतिथंच पंचेन्द्रियगर्भजना पर्याप्ता अने अपर्याप्ता मळीने दशभेद-समुर्छिम तिर्यंच पञ्चेन्द्रियना पांच भेदमां अने त्रणविकलेन्द्रिय ए आठमां अपर्याप्तावस्थामां पा. मीए, तथा पृथ्वी, अप् , वनस्पतिनी अपर्याप्तावस्थामा त्रण भेद. सर्व मळी चारसे भेद थाय. २९१ यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान अने समाधि-एवं योगनां आठ अंग छे सम्यग्दृष्टि जीवने आ आठ अंग, सम्यग् पणे परिणमे छे.
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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