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तथ्यविन्दु.
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शम समकित पर्याप्तावस्थामांहि पमाय. विशेष के पांच अनुतर विमानमां जाय तो तेने अपर्याप्तावस्थामां उपशम समकित होय, अने पर्याप्तावस्थामां तो पांच अनुत्तर विमानमां क्षयोपशम समकित वा क्षायिक समकित होय. नव लोकांतिक देवताने उपशम समकित न होय.
२८८ जीवना पांचसो त्रेसठमांथी १६८ एकसो अडसठ भेदमां : क्षायिक समकित होय. १२ बार देवलोक, नव लोकांतिक, नव नवग्रैवेयक, पांच अनुत्तर विमान, ए पांत्रीसना पर्याप्त अने अपर्याप्त भेद गणतां सित्तेर भेद थाय. त्रीजी नरक सुधीना पर्याप्ता अने अपर्याप्ता गणतां छ भेद. पन्नर कर्मभूमि
नेत्री अकर्मभूमिना पिस्तालीश भेद ते पर्याप्ता अने अपर्याप्ता गणतां नेतुं भेद थाय. अने तिर्यच गर्भज पंचेन्द्रियना पर्याप्ता अने अपर्याप्ता ए बे भेद गणतां सर्व मळी एकसो अडसठ भेद थाय.
२८९ पांचसो त्रेसठ जीवना भेदछे तेमांथी चारसो वीस भेद क्षयोपशम समतिमां जाणवा