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(ग)
संबंध में विदेशी व स्वदेशी विद्वानों के विचार दिये गए हैं। इस अध्याय में भारतीय काल-गणना के चक्रों का उल्लेख है जो अनेक भारतीय संवतों का आधार रही है। इसमें पंचवर्षीय चक्र, सप्तर्षि चक्र, बृहस्पति काल (चक्र), परशुराम का चक्र ब ग्रहपरिवर्ती चक्र का उल्लेख है । द्वितीय अध्याय में धर्म चरित्रों से संबंधित संवत् है। इसमें ऐसे संवतों का उल्लेख है जो अनेक सम्प्रदायों के धर्म-नेताओं अथवा देवी-देवताओं की जीवन-घटनाओं से जुड़े हैं । इनमें बहुत से आज भी प्रचलित हैं। परन्तु वे धर्मकार्यों के लिए प्रयोग होते हैं, तथा जिस सम्प्रदाय से संबंधित हैं उस सम्प्रदाय के मानने वालों तक ही सीमित हैं । इसके अतिरिक्त इनका विशेष महत्त्व नहीं है। तृतीय अध्याय में ऐतिहासिक घटनाओं से आरम्भ होने वाले संवत हैं, इसमें ऐसे संवतों का उल्लेख किया गया है जो भारतीय इतिहास की ऐसी घटनाओं से आरम्भ होते हैं, जिनकी प्रामाणिकता इतिहास के दृष्टिकोण से निश्चित की जाती है । यद्यपि इन घटनाओं के संबंध में भारी मत-भिन्नता है फिर भी विभिन्न साक्ष्यों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर यह माना जाता है कि वे सम्भावित तिथि के करीब घटित अवश्य हुई। इस अध्याय में वर्णित संवतों में अधिकांश के आरम्भ का उद्देश्य अपने आरम्भ करने वाले राजा की राजनैतिक प्रभुसत्ता दर्शाना है। कुछ संवतों के आरम्भ का उद्देश्य राजनैतिक शक्ति-प्रदर्शन के साथ-साथ धार्मिक प्रचार भी रहा है। चतुर्थ अध्याय में अनेक प्रमुख संवतों के ऐसे तत्वों का उल्लेख है जो सब में एक जैसे ही ग्रहण किए गए हैं। इसमें वर्तमान गणनापद्धति के आधारभूत तत्त्वों चन्द्र मान, सौर मान, चन्द्र-सौर मान का उल्लेख हुआ है तथा भारत में वर्तमान समय में प्रचलित कुछ पंचांगों का वर्णन किया गया है। वर्तमान हिन्दू पंचांगों की क्या पद्धति व अवस्था है, इसका भी वर्णन हुआ है। पंचम अध्याय में ऐसे कारणों का जिक्र किया गया है, जिन्होंने भारत में संवतों की विशाल संख्या को जन्म दिया। साथ ही कुछ ऐसे तथ्य भी दिए हैं जो इन संवतों की संख्या को सीमित कर देने के लिए उत्तरदायी हैं। भारत सरकार ने शक संवत् को राष्ट्रीय पंचांग के रूप में ग्रहण करते समय उसके पूर्व प्रचलित स्वरूप में किस प्रकार परिवर्तन किया है, इसका उल्लेख है। साथ ही वर्तमान राष्ट्रीय पंचांग की मालोचना दी गयी है । "निष्कर्ष" नामक अध्याय में इस संदर्भ में सुझाव दिए गए हैं कि वर्तमान राष्ट्रीय पंचांग में किस प्रकार के सुधार किए जाये जिससे कि वह भारत राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर सके। भारतीय राष्ट्रीय संवत् का स्वरूप क्या हो-इस पर भी विचार किया गया है। परिशिष्ट में दी तालिकायें हैं, जिनमें भारत में प्रचलित हुए संवतों के आरंभिक