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भारतीय संवतों का इतिहास
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होता है तब खण्डे प्रलय होती । खण्ड प्रलय व महाप्रलय कब तक रहती है यह नियत है तथा चन्द्र, सूर्य, ग्रहों आदि की गति का जो अनादि काल से नियम चला आता है वह नियत है ।" डा० त्रिवेद ने सृष्टि के व्यतीत समय की गणना की व्यवस्था इस प्रकार दी है - "हम आधुनिक सृष्टि के व्यतीत समय का इस प्रकार भी हिसाब लगा सकते हैं क्योंकि ब्रह्मा के दिन अथवा कल्प में १४ मनु होते हैं । प्रत्येक समयावधि को मनु अथवा मन्वन्तर कहते हैं । यह सातवां मन्वन्तर चल रहा है, अनुमानत: ७१ चतुर्युगों की गणना निम्न प्रकार होगी -
१२००० × ३६० X २७ = ११६६,४०,००० तथा ५०२७ वर्ष कलि ( अर्थात् ४८०० + ३६००+२४०० × ३६० = ३८८८००० इस प्रकार कुल युग = १,६६,०८,५३,०५८ वर्षं होगी । यह गणना १६५७ ई० की है । २
अलबेरुनी ने ब्रह्मा की कुल आयु की गणना इस प्रकार की है—
"हमारे माप के पहले ब्रह्मा की आयु के हमारे २ नील, ६२ खरब, १५ अरब, ७३ करोड़, २६ लाख ४८ हजार, १३२ वर्ष बीत चुके हैं (२,६२,१५,७३,२६,४८,१३२ वर्ष ) । ब्रह्मा के अहोरात्र अर्थात् दिन के कल्प के १ अरब, ६७ करोड़, २६ लाख, ४८ हजार, १३२ तथा सातवें मन्वन्तर के १२ करोड़ ५ लाख ३२ हजार १३२ वर्ष बीत चुके हैं । "3
इसाईयों की परम्परानुसार विश्व का निर्माण ४००४ ई० पूर्व अथवा ७१० जूलियन युग में हुआ। जूलियन युग का आरम्भ ४७१४ ई० पूर्व माना जाता है ।"
जैन परम्पराओं के अनुसार संसार अनंत है न इसका आदि है न अन्त। इसके अनुसार संसार पहिये के समान घूमने वाला चक्र है । ऊपर चलने वाला समय उत्सर्पिनी तथा नीचे चलने वाला अवसपनी कहलाता हैं । जैन धर्म का आरम्भ भी कब हुआ इस सम्बन्ध में भी निश्चित तिथि ज्ञात नहीं हैं । जैन
१. निरूपण विद्यालंकार, 'महर्षि दयानन्द और सृष्टि सम्वत्', 'स्मारिका', मेरठ आर्य समाज शताब्दी समारोह, १६७८, पृ० १८ ।
२. डी० एस० त्रिवेद, 'इण्डियन क्रोनोलोजी', बम्बई. १६६३, पृ० २ ॥
३. अलबेरूनी, 'अलबेरूनी का भारत' (अनु० रजनीकांत), इलाहाबाद, १९६७, पृ० २६४ ।
४. डी० एस० त्रिवेद, 'इन्डियन क्रोनोलोजी', पृ० २ ।