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'भारत में सम्वतों की अधिक संख्या की उत्पत्ति के कारण...
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पढ़े बिना इन परिवर्तनों को समझना कठिन है । एक साधारण मनुष्य के लिए वह लगभग असम्भव है कि वह कलेण्डर सुधार समिति की रिपोर्ट को गहराई से समझे व उसके सिद्धान्तों का अध्ययन करें। अत: अधिकांश लोग इसे शक संवत् ही समझते हैं। और राष्ट्रीय संवत् को उससे अलग नहीं समझते ।
___ भारत सरकार द्वारा शक संवत् को राष्ट्रीय संवत् के रूप में ग्रहण किया गया है, किन्तु इस संवत् के स्वरूप में भी कुछ इस प्रकार की कमियां विद्यमान हैं कि इसे हम राष्ट्रीय संवत के नाम से सम्बोधित नहीं कर सकते और अपनी इन्हीं दुर्बलताओं के कारण चार दशक बीत जाने पर भी यह राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ है। इन कमियों को इस प्रकार देखा जा सकता है : ___ कलेण्डर सुधार समिति की प्रथम बैठक में एक वैज्ञानिक नागरिक सौर कलण्डर को राष्ट्रीय कलैण्डर के रूप में ग्रहण किये जाने की तो सिफारिश की गयी, जो कि दैनिक जीवन में तिथि गणना के लिए प्रयोग किया जाये तथा जिसका आरंभ महाविषुव से किया गया, लेकिन धार्मिक कलेण्डर का आरंभ पूर्व प्रचलित रिवाजों पर छोड़ दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि धार्मिक क्षेत्र में पूर्व प्रचलित अशुद्धियां वैसे ही चलती रहीं, विभिन्न सम्प्रदाय अपने पूर्व प्रचलित कलैण्डरों का ही प्रयोग करते रहे । धार्मिक कलण्डरों में किसी भी प्रकार के सुधार की आवश्यकता महसूस नहीं की गयी। भले ही उनमें खगोलशास्त्रीय दृष्टिकोण से कितनी हो त्रुटियां क्यों न हों, और न ही उनका कोई पारस्परिक संबंध स्थापित करने का प्रयास किया गया।
धार्मिक संस्थाओं को कलैण्डर सुधार कार्यक्रम में शामिल न किये जाने का एक दुष्परिणाम यह हुआ कि बहुत बड़ा जन-समुदाय जो मात्र धार्मिक कलेण्डर को ही जानता है (हिन्दू, मुस्लिम दोनों) कलैण्डर सुधार कार्यक्रम को समझ नहीं पाया । यदि सरकार इस कार्यक्रम में धार्मिक नेताओं को भी शामिल करती तथा उनके सम्प्रदाय के मुख्य त्योहारों का सामंजस्य राष्ट्रीय पंचांग से करने के लिए उनका सहयोग लिया जाता तब संभव है कलेण्डर सुधार कार्यक्रम अधिक व्यापक व लोकप्रिय होता तथा जन-साधारण उसको अच्छी तरह समझ पाता।
कलण्डर सुधार समिति के विद्वान सदस्यों ने स्वयं तो धार्मिक छुट्टियों को श्रेणीबद्ध करने तथा अलग-अलग सम्प्रदायों के लिए धार्मिक छुट्टियों की व्यवस्था करने का प्रयास किया उसके लिए अलग-अलग तालिकायें दी लेकिन इस संबंध में धार्मिक संस्थाओं का सहयोग नहीं लिया गया।