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________________ ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत् 'मालवानां जयः" अथवा "मालवगणस्य जय" अथवा "जय मालवानां जय" लिखा हुआ है। इन मुद्राओं के सम्बन्ध में श्री जय चन्द विद्यालंकार लिखते हैं : "पहली शताब्दी ई० पूर्व के मालवगण के सिक्कों पर मालवानां जय : और मालवगणस्य जयः की छाप रहती है। वे सिक्के स्पष्टतः किसी बड़ी विजय के उपलक्ष में चलाये गये थे और वह विजय ५७ ई० पूर्व की विजय के सिवाय और कौन सी हो सकती थी ?" इस प्रकार आरम्भ में अभिलेखों में कृत सम्वत् नाम का प्रयोग किया गया, ये लेख २८२ से ४८१ के बीच के हैं। इसके बाद ४६१ व ४८१ के लेखों में मालवगण तथा कृत नामों को साथ-साथ दर्शाया गया है । दसवीं शताब्दी के लगभग एक दर्जन लेखों में केवल मालवा या मालवगण का प्रयोग हुआ है, ७७० के करीब के दो लेखों में न कृत शब्द का और न मालव शब्द का प्रयोग हुआ है, लेकिन सम्वत् को संवत्सर शब्द से निर्दिष्ट किया गया है। ८६४ में विक्रम काल का प्रयोग हुआ इसके बाद मालव का स्थान विक्रम शब्द ने ले लिया तथा उसके बाद के अधिकांश लेखों में विक्रम शब्द ही प्रयुक्त हुआ। सम्वत् के लिए पहले कृत, फिर मालव तथा इसके बाद विक्रम शब्दों का प्रयोग यह प्रश्न उपस्थित करता है कि यदि सम्वत् का आरम्भकर्ता विक्रमादित्य ही था तब आरम्भ से ही सम्बत् को विक्रम सम्वत् के नाम से क्यों नहीं लिखा गया ? आरम्भ में कृत, फिर मालव तथा अन्त में विक्रम नाम ग्रहण करने की क्या आवश्यकता थी? विभिन्न विचारकों ने इस समस्या का समाधान दिया है तथा उन कारणों पर प्रकाश डाला जिनसे सम्बत् के नामों में परिवर्तन किया गया। ___ "कृत युग" का अर्थ कुछ विद्वानों ने सत् युग (स्वर्ण युग) से लगाया है। बर्बर शकों पर मालवगण की विजय के स्मारक स्वरूप सम्वत् चलाया गया। भारत से शकों के निष्कासन से देश विदेशी आक्रमण से मुक्त हो गया, शक्ति और सम्पन्नता का युग उद्घाटित हुआ, जिसे अलंकारिक रूप से कृत युग (सतयुग) समझा जा सकता था। इसीलिए पहले सम्वत् का कृत नाम सार्थक था। भारतीय ज्योतिष में कृत केवल युग का क्रमिक विभाग नहीं अपितु सुखी व समृद्ध युग का भी बोधक है । शकों के निष्कासन के बाद मालवगण की सुदृढ़ नींव के समय अलंकारिक भाषा में कृत युग आरम्भ किया गया। बाद में यह सम्वत् मालव सम्वत् या मालवों का सम्वत् या मालवेशों का सम्वत् कहा गया। १. हरि निवास द्विवेदी द्वारा उद्ध त, "मध्य भारत का इतिहास", प्रथम खण्ड, १६५६, पृ० ४३७ ।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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