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________________ ६४ भारतीय संवतों का इतिहास प्रचलित किये हुए प्रशस्तकृत संज्ञा वाले ४६१वें वर्ष के लगने पर वर्षा ऋतु में"। (2) राजपूताना में रखे हुए नगरी के लेख में "कृत (नामक) ४८१वें वर्ष (सम्वत्) में इम मालव पूर्वा कार्तिक शुक्ला पश्चिमी के दिन" ( 3 ) मंदसौर से मिले हुए कुमार गुप्त प्रथम के समय शिलालेख में : "मालवों के गण (जाति) की स्थिति से ४६३ वर्ष बीतने पर पौष शुक्ल १३ को'। (४) मंदसौर से मिले यशोधर्मन के समय के शिलालेख में : "मालवगण (जाति) की स्थिति के वंश से काल ज्ञान के लिये लिखे हुए ५८६ वर्षों के बीतने पर"। (5) कोटा के पास के कणस्वा के शिव मन्दिर में लगे हुए शिलालेख में : "मालवा या मालव जाति के राजाओं के ७६५ वर्ष बीतने पर" । इन सभी अवतरणों से यही पाया जाता है कि : (अ) मालवगण (जाति) अथवा मलव (मालवा) के राज्य या राजा की स्वतन्त्र स्थापना के समय से इस सम्वत् का प्रारम्भ होता था। (आ) अवतरण एक और दो में दिये हुए वर्षों की संख्या "कृत" भी थी। (इ) इसकी मास पक्ष युक्त तिथिगणना भी मालवों की गणना के अनुसार ही कहलाती थी। प्राचीन अभिलेखों में विक्रम सम्वत् को देखते हुए हरि निवास द्विवेदी ने कुछ निष्कर्ष इस प्रकार दिये हैं : सम्वत् १२०० विक्रमीय तक के लगभग २६१ अभिलेख प्राप्त हुये हैं इनमें सम्बत् ६०० से पूर्व के केवल ३३ ही हैं। (1) २८२ से ४८१ तक इसे कृत सम्बत् कहा गया है। (2) सम्वत् ४६१ से ६३६ तक इसे मालव सम्वत् कहा गया है। सम्वत् ४६१ के मन्दसौर के अभिलेख में इसे कृत तथा मालव दोनों संज्ञायें दी गई हैं। (3) सम्वत् ७९४ के ढिमकी के अभिलेख में इस सम्वत् को सबसे पहले विक्रम सम्वत् कहा गया है । परन्तु डॉ० अल्तेकर ने इस अभिलेख युक्त ताम्र पत्र को जाली सिद्ध कर दिया है । अतः विक्रम सम्वत् के नाम से यह सर्वप्रथम धौलपुर के चण्ड महासन के ८६८ के अभिलेख में अभिहित किया गया है। (4) मालव तथा कृत नामों के प्रयोग की भौगोलिक सीमा, उदयपुर, जयपुर, कोटा, भरतपुर मन्दसौर तथा झालावाड़ हैं। विक्रम नाम सम्पूर्ण भारत में प्रयुक्त हुआ है। शिलालेखों के साथ-साथ कुछ मुद्रा लेख भी प्राप्त हुए हैं, जिन पर विक्रम सम्वत् अंकित हैं । जो इस सम्वत् के आरम्भ तिथि व आरम्भकर्ता के विषय में अनुमान लगाने में सहायक हैं। मालव प्रान्त में मालवगण की मुद्रायें प्राप्त हुई हैं, उनमें कुछ मुद्राओं पर एक ओर सूर्य या सूर्य का चिन्ह है तथा दूसरी ओर १. हरि निवास द्विवेदी एवं अन्य, "मध्य भारत का इतिहास", प्रथम खण्ड, १९५६, पृ० ४३५।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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