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________________ QUOEGEGEGUGGrove अथ पंचमस्तरंगः Corse. ६.५ २.६ १.५ १.६ १.१.५ १.० १.१. ) योग्याऽयोग्यानेव दृष्टांतराह-मूत्रम्-गिरिसिर पणान मस्यन । कसिणावणि जनहिसुत्तिमणिखाणी ॥ धम्मोवएसवासे फलजणणे जीवदिलुता ॥ १ ॥धर्मोपदेशवृष्टौ फरजनने च, जीवदिलँत्ति, जीवानां दृष्टांता गिरिशिरःप्रभृतयः षड् नवंति, षष्टीस्रोपः प्राकृतत्वात् ॥५॥ वळी ते योग्य तथा अयोग्योनेज दृष्टांती पूर्वक कहे रे.-मूल नो अर्थ-धर्मोपदेशनी वृष्टि होते बते, तेनुं A फळ उत्पन्न करवामां गिरिशिखर, प्रणालिका, रुस्यन, कृष्णनूमी समुदनी जीप, तथा मलिनी खाण सरखा जीवानां दृष्टांतो जाए वां ॥१॥ धमापदेनी वृष्टि होते ते पनी उत्पत्ति माटे जीवानां गरिचि.रुर आदिक ब दृष्टांतो में अहीं प्राकृत भाषा होवायी बट्टी विज्ञक्तिनो लोप थयो रे ॥२॥
SR No.023410
Book TitleUpdesh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalan Niketan
PublisherLalan Niketan
Publication Year1925
Total Pages406
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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