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________________ ॥११५॥ श्त्युक्ता बहिरंतरसाराः प्रथमन्नंगानुसारिणः कुगुरुवः, एते च प्रयमन्नंगाजरणवद् गु कारधारिणोऽपि वाहीकमुग्धमिथ्याग्मोहाऽज्ञानांधितचेतस्कजनमान्या अपि च स्फुटारंजाऽधर्मप्रवृत्तदेवपव्यपरिनोगपरोपतापिवाक्कुकर्मादिनिर्विज्ञजनाऽवज्ञास्पदत्वेनेह लोकेऽपि न तथा पूजासुखादिनाजः ॥ १॥ नित्यजीविकाऽपत्योछाहनादिचिंताकृषिराजसेवादिन्निः प्रायो दुःखिता एव च; प्रेत्य च नृपाधिकारनिमित्तज्योतिषकयनादिमहारंलप्रवर्त्तनादिपापैः प्रायो निरयादिर्गतिगामिन एवेति ॥ ७३ ॥ तक्तं 'नरिंदनेमित्तिप्रायजोसिया' इपि पद्मचरित्रे नरकगामिजीवाधिकारे; बौकिकैरप्युक्तं-॥ १४॥ एवी रीते बहारथी अने अंदरथी सारविनाना एटने पेहेला नांगाने अनुसरनारा कुगुरुयोर्नु स्वरूप का अने तेश्रो पेहेला जांगावाळा आनूषणनी पेठे गुरुना आकारने जो के धारण करे , तोपण, तेमज मजुर, नोळा, मिथ्या तितया मोह अने अहानथी अंध चित्तवाळा लोकोथी माननीक उतां पण प्रगट रीते प्रारंन, अधर्ममा प्रवर्तन, देवद्रव्यनो उपनोग, परने पीमा उपजावनारी वाणी, तया कुकर्म आदिकोवमे करीने विधानोनी अवडाना स्थानकरूप होवायी आ झोकमां पण एवी रीते मान तया सुख आदिकने नजनारा या शकता नथी ॥ ७ ॥ हमेशा जीवे एवां संतान, विवाह आदिकनी चिंता, खेती, तथा राजसेवा आदिकें करीने प्रायें करीने दुःखीज रहे ; तेम परलोकमां पण राज्याधिकार, निमित्त तथा ज्योतिष कयन आदिक मोटा आरंजना | प्रवर्तन आदिक पापोयें करीने प्रायें करी नरक आदिक दुर्गतिमा जनाराज थाय ॥ कयु के 'राजा, निमित्तिा , ज्योतिषी' एम पद्मचरित्रमा नरकगामी जीवोना अधिकारमा का डे: अन्यदर्शनीअोए पण कद्यं ले के ॥॥ श्री उपदेशरत्नाकर.
SR No.023410
Book TitleUpdesh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalan Niketan
PublisherLalan Niketan
Publication Year1925
Total Pages406
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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