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तत्र रूपोपदेश क्रियानिरिति सामान्योक्तावपि वचनस्य विशेषविषयत्वात् तहिशेषा ग्राह्याः ६ ॥ तथाहि खगपके रूपं विशिष्टवर्णाकारादिस्वरूपं, उपदेशः श्रोतृजनाहादिवचनं, क्रिया पुनः शुच्याहारादिरूपा, गुरुपदे तु रूपं जिनप्रणीतस्तादृक्प्रमाणायुपेतो वेषः ॥ ॥ उपदेशः शुधमार्गप्ररूपणा क्रिया च सम्यग्मोक्षमार्गानुष्टानरूपेति, अपि च रूपोपदेश क्रियारूपैस्त्रिन्तिः पदैरष्टौ नंगाः, तथाहि-एकैकनंगास्त्रयः, रूपं, उपदेशः, क्रिया च ; कियागास्त्रयः, रूपोपदेशौ, उपदेशक्रिये, रूपक्रिये च; त्रिकयोग एकः, त्रयाऽन्नावपदश्चैक इति ॥ ७॥ एतैश्चाष्टनिलंगेर्यथाऽष्टधा चाषादयः पक्षिणः, तथाऽष्टधा गुरवोऽपि; एतदेव नाव्यते ॥ ५॥
तेमां रूप, उपदेश अने क्रियावके करीने, एम सामान्य प्रकारे कहेते उते पण वचननो विशेष प्रकारनो विषय होवाथी ते संबंधि विशेषो पण ग्रहण करवा ॥ ६॥ ते कहे जे.-पशि संबंधि पक्षमा उत्तम वर्ण, आकार श्रादिकना स्वरूपवाळु रूप जाणवू ; जपदेश एटझे श्रोताओने हर्ष करनारुं वचन जाणवं; तथा क्रिया एटले पवित्र श्राहार आदिक रूप जाणवी ; गुरुना पक्षमा रूप एटले जिनेश्वर प्रनुए कहेलो तेवी रीतना प्रमाण आदिकवाळो वेष जाणवो ॥ ७ ॥ उपदेश एटले शुष मार्गनी प्ररूपणा; तथा क्रिया एटले सम्यक् प्रकारे मोक्षमार्गना अनुष्टान रूप क्रिया जाणवी; वळी ते रूप उपदेश अने क्रियारूप त्रण पदो वो करीने आउ नांगाग्रो थाय जे ते कहे .एकेकना त्रण मांगा, रूप, उपदेश अने क्रिया; कियोगी त्रण नांगा, रूप अने उपदेश, उपदेश अने क्रिया, तथा रूप अने क्रिय, त्रिकयोगी एक नांगों; तथा त्रणेना अजावना पदवाळो एक नांगो ॥ ॥ एवी रीते उपर वर्णवेला आठ जांगा में करीने जेम आउ प्रकारना चाष आदिक पक्रियो होय छे, तेम गुरुओ पण आठ प्रकारना होय छे; तेज स्वरूप इवे कहे ॥ ४ ॥
श्री उपदेशरत्नाकर