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________________ इति घारगाथायां जुग्गेहित्ति गतं, अथजुग्गपासेति द्वितीयं द्वारं विवरितुं श्रीगुरुगतं योग्यायोग्यत्वस्वरूपं निरूपयति, प्रस्तावागतं श्राद्धादिगतमपि ॥ २ ॥ मूलम् - जह चास कुंच महुर | मोर पिगा हंस कीर करटमुहा ॥ अट्ट खगा तह गुरुणो । रुएसाइ किरियाहिं ॥ ३ ॥ व्याख्या - चाषक्रौंचमधुकरमयूर पिकसकीरा प्रसिद्धाः, करटो ध्वांक्षः, मुखशब्दः प्रमुखार्थः, स च प्रत्येकं योज्यः, ततश्च यथा चाषप्रमु खाश्चापप्रकाराः पक्षिण इत्यर्थः ॥ ४ ॥ एवं क्रौंचप्रमुखाः मधुकरप्रमुखा इत्यादि ज्ञेयं, रूवुवएसा इत्यादि, रूपोपदेश क्रिया निरष्टेत्यष्टप्रकाराः खगाः पक्षिणः स्युः, एवं गुरवोऽप्यष्टप्रकारा जयंतीति पिंमार्थः ॥ ५ ॥ एवं रीतनी धार गायामां ' योग्यो ए' पदनुं वर्णन कर्युः हवे 'योग्य पासे' एवी रीतना वीजा द्वार aare करवा माटे, श्रीगुरु संबंध योग्य अयोग्यनुं स्वरुप, तेमज प्रस्तावसुं श्रावक यादिक संबंधि पण योग्य योग्य स्वरूप निरूपण करे जे ॥ २ ॥ मूळनो अर्थः जेम चाप, क्रौंच, भ्रमर, मयूर, कोयल, हंस, पोपट तथा aran आदि पक्षियो बे, तेम गुरुओ पण रूप उपदेश तथा क्रियायी व प्रकारना बे ॥ ३ ॥ व्याख्याचाप क्रौंच, भ्रमर, मयूर कोयल, हंस ने पोपट ए प्रसिद्ध बे. करट एटले कागको; ते मुखशब्द यहीं प्रमुखने अर्थेडे; अने ते दरकनी साथे जोमी देवो; अने तेथी चाप आदिक नाना प्रकारवाळा पहिओ जाएवा ॥ ४ ॥ एवी | रीते क्रौंच आदिक भ्रमर आदिक, एम जावं; एटले रूप उपदेश अने क्रियावमे करीने आठ प्रकाशना पक्षियो होय बे, अने एवी रीते गुरुओ पण आठ प्रकारना होय छे, एवो समुदायार्य जावो ॥ ५ ॥
SR No.023410
Book TitleUpdesh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalan Niketan
PublisherLalan Niketan
Publication Year1925
Total Pages406
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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