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अथ द्वादशमस्तरंगः RPFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFE
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श्दानी प्रकारांतरेण योग्याऽयोग्यखरूपप्रकटनाय आगमगाथामेवाह-मूलम् ॥सेल घण कुमगचामणि । परिपूणग हंस महिस मेसे अ ॥ मसग जझुग बिराली जाहग गोनेरि आनीरी॥१॥
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हवे वीजा प्रकारयी योग्य तया अयोग्यतुं स्वरूप प्रगट करवा माटे आगमनी गायाज कहे जे, मूळनो । अर्थः-मगशेल पाषाण अने वरसाद, घमो, चानणी, सुघरीनो माळी, हंस, पामो, घेटो, मशक, जळो, बीलामी, छ शेरो, गाय, जेरी तया आजीरी, (एटलां उदाहरणे जाणवां) ॥१॥