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________________ मूलगाथन ततः पक्कपत्रसदृशानां इतरसत्वानां का वार्ता तो पक्कपत्तसँरिसा-ण श्यरसत्ताण को वत्ती ॥३३॥ शब्दार्थ- हे नव्यजीवो! (जश के०) जो (मयणपवणेण के) कामदेवरूप पवने करीने (सुरसेल के०) मेरुपर्वत सरखा (निचला के०) अतिशय निश्चय एवा (तारिसावि के ) ते आर्डकुमार, नंदिषेण थने रथनेमि सरखा पुरुषो पण (चलिया के०) चलायमान थया; (ता के०) तो (पक्कपत्तसरिसाण के०) पाका पांदडा सरखा एवा (इयरसत्ताण के०) बीजा प्राणिनी (का वत्ता के०) शी वात ? अर्थात् मेरुपर्वत सरखा धीर पुरुषोने पण कामदेवे चलाव्या बे, तो बीजा श्रधीर पुरुषो चलायमान थाय तेमां तो कहेज शुं ? ॥ ३३ ॥ विशेषार्थ- हे जव्यजनो! जो कामदेवरूप पवने मेरुपर्वत सरखा अतिशय निश्चल एवा आईकुमार नंदिषेण अने रथनेमि सरखा पुरुषो चलायमान थया तो पड़ी पाका पादडां सरखा बीजा सामान्य प्राणि चलायमान थाय तेमां शुं श्राश्चर्य ? ॥ ३३ ॥ हवे कामर्नु उर्जयपणुं कहे. जीयंते सुखनैव हरिकरिसादयः महाक्रूराः जिप्पंति सुदेणेचिय, दरिकरिसप्पाश्णो मदाकूरा॥ एकएव पुर्जयः कामः कृतशिवसुखविरामः कुंचिय धुळे, काँमो कयसिवसुंदविरामो॥३४॥ शब्दार्थ- जे महासुनटोए (महाकूरा के०) महाक्रूर एवा (हरिकरिसप्पाश्णो के०) सिंह, हस्ति अने सर्पादिक प्राणि (सुदेणंचिय के०) सुखे करीनेज (जिप्पंति के०) जीताय बे, परंतु तेवा पुरुषोए (इक्कुच्चिय के०) एकलो एवो अने (कयसिवसुहविरामो के०) कस्यो बे मोद सुखनो नाश जेणे एवो (कामो के०) कामदेव , तेज (5. जे के०) फुःखे करीने पण जीती शकायो नथी. ॥ ३४ ॥ _ विशेषार्थ- महा सुजट पुरुषो, पुष्ट हृदयवाला सिंहने, हस्तिने अने सर्प विगेरे क्रूर जीवोने तेना ते ते उपाये करीने पोताने वश्य करे ,परंतु मोक्षसुखनो नाश करनार एक कामदेवने जीती शकता नथी. कह्यु
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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