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________________ विजयपाल राजा ने लक्ष्मी राणीनी कथा. ५५ रणकमलनी, स्वर्गथी श्राश्रयवाली लक्ष्मी राणी प्रीतिथी अने घणा उ त्साही विनंती करे बे के, "हुं अहिं कुशल बुं. हे नाथ ! में तमने म्हारा हृदयमां धारण करेला होवाथी हुं घणा जारवाली यइ बुं, माटे हुं तमारी पासे यावी शकती नथी, तेथी म्हारा अंगनां घरेणां या पत्र लावनार माणससाथे जरूर मोकली थापजो, के जेथी हुं पतिना मानवाली कवाडं. वली पंदर दिवस अथवा महिना पछी बीजां घरेणां ने वस्त्रो पण मोकल ज्यो.” या प्रकारना समाचार वांची राजाए प्रधानने कयुं के, "हे प्रधान ! सारां सारां घरेणां ने मनोहर देखातां सारां सारां वस्त्रो या पत्र लावनार माणसने पो के, ते देवीने श्रापशे. कर्तुं बे के समाचार आपनारो माणस लक्ष मूल्य पामे बे, समाचार लखी आपनार क्रोड मूल्य पामे बे, देखनार शेंकडो कोडो मूल्य पामे वे अने स्नेहिनो संगम अमूल्य वस्तु पामे बे. परंतु ते स्वर्गमां शीरीते जर शकशे ?” प्रधाने कधुं. "हे देव! ते माणस वगडामां जइ अग्निनी चय सलगावी तेमां प्रवेश करशे, एटले ते स्वर्गमां पहोचशे . " प्रधाननां एवां वचन सांजली को पद्मनामना श्रेष्ठीए राजाने कह्युं के, “ हे स्वामिन् ! या वृद्ध माणस जार उपाडीने ज‍ श - कशे नही, माटे बीजा कोइ जवान माणसने मोकलो.” पद्मश्रेष्ठीनुं एवं वचन सांजली प्रधान विचार करवा लाग्यो के, पद्मश्रेष्ठी म्हारो नेद जाग्यो, तेथी दवे म्हारे तेनो घाट घडवो जोइए ! " एम विचारी प्रधाने राजाने कह्युं के, " हे राजन् ! या पद्मश्रेष्ठी जवान बे, माटे जो श्रापनी मरजी होय तो तेनेज मोकलीए " राजाए कयुं "तेम करो. ፡ "" पी ज्यारे ते पद्मश्रेष्ठीने बलात्कारे जाली वगाडामां सलगावेला श्रग्निपासे लइ जवा मांड्यो, त्यारे ते पद्मश्रेष्ठीना संबंधी प्रधानने पूढवा लाग्या के, " ए शो अपराध कस्यो बे” प्रधाने उत्तर श्राप्यो के, "तेणे पोताना हाथेज वाचालपणाची अपराध कस्यो बे.” पढी ते पद्मश्रेष्ठीना संबंधीए प्रधानने घणीज विनंती करी, त्यारे प्रधाने तेने बोडावी ने प्रथ मना वृद्ध माणसने ते घरेणां ने वस्त्रो याप्यां, एटले तेणे स्वर्गमां जवा नुं नाम देने गुप्तरीते प्रधानने घेर यावी तेने घरेणां अने वस्त्रो आप्यां. एक वखते राजाए प्रधानने कयुं, " हे प्रधान ! लक्ष्मीदेवीने स्वर्ग
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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