SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ शीलोपदेशमाला. जातनी पीडा नथी. जेथी सर्व इंजियोने प्रीति थाय .” माटे हे नाथ! जो मने मलq होय तो ऊट अहिं श्रावो, कारण के, जो नंदनवन स्वाधीन . तो पनी मरुदेश (जलरहित देश) मां क्यो पुरुष रमे ?" ते पुरुषनां श्रावां वचन सांजली राजाए पोताना प्रधान विगेरेने कह्यु. “हे मंत्रीजनो! तमे मने ऊट स्वर्गनो मार्ग बतावो के, जे मार्गे करीने हुँ स्वर्गमां जश् म्हारी प्रियानुं मुखकमल जोलं.” राजानां एवां वचन सांजली राणीनो संदेशो लावेला माणसे कयु के, “हे राजन् ! पहेढुं स्नान अने विलेपन करो. पली नोजन करो तथा हम्मेशां पुण्यकार्य साधो एटले तमने स्वर्गमां जवानो रस्तो मलशे ? वली हुं पण पाबो स्वर्गमां जश् आपनी आववानी वात कहुं .” एम सांजली राजा स्नान विगेरे सर्व कार्य करवा लाग्यो. कयु ने के- निर्बुद्धिर्वा सुबुद्धिर्वा, रंको वा यदिवा नृपः॥अलिकमपि रागेण, वेत्ति सत्यतया पुमान् ॥१॥ अर्थ- बुझिविनानो, सुबुद्धिवालो, रंक अथवा राजा, ते सर्वमांथी कोशपण पुरुष रागने लीधे असत्यने पण सत्य करीने माने बे, वली केटलाक दिवस पड़ी तेज माणसे राजसनामां आवी उत्तम प्र. कारनां फलो राजानी आगल मूकी हाथ जोडीने कडं. "हे राजन् ! लक्ष्मीदेवीए मोकलेलां था कल्पवृक्षनां फलो हुं लाव्यो बुं.” एटले ते फल राजाए घणी प्रीतिथी लीधां. एवी रीते ते माणसने प्रधान वारंवार राणीना नामथी राजा पासे मोकलतो हतो. एवामां एक दिवसे प्रधानने विचार थयो के," रखेने! को धूर्त माणस म्हारा कपटनी वात जाणीने राजानी पागल कहे !” एम विचारी प्रधाने एकनोजपत्र उपर कस्तूरीना रसथी समाचार लखी स्वर्गमांथी थाववानुं नाम लेश्ने थावनार माणसने श्रापी राजानी सजामां मोकल्यो. पठी ते माणसे राजापासे श्रावी पत्र आपीने कडं के, " हे देव ! तमने आ पत्र पवामाटे देवीए मने स्वर्गमांथी मोकल्यो .” ते माणसनां एवां वचन सांजली राजा पत्र जोश्ने कहेवा लाग्यो के, “धन्य ने स्वर्गनी सामग्रीने ! के, जेमां था प्रकारनी सामग्री रहेली !!!” एम वखाण करीने पत्र वांचवा लाग्यो, तो तेमां था प्रमाणे लखेलुं हतुंः__ " स्वस्तिश्री पुरिमताल नगरीना महाप्रतापी विजयपाल राजाना च
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy