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________________ ३७० शीलोपदेशमाला. (तालउडं के०) तालपुट नामनुं विष जे ते प्राणिनुश्रहित करे ॥६॥ विशेषार्थ- जेम तालपुट नामनुं विष माणसोनुं अहित करनार में, तेम तत्वना जाण माणसने उन्नट वस्त्र अने घरेणां विगेरेथी शरीर शपगार, स्त्रीउनो समागम करवो, स्निग्ध श्राहार जमवो अथवा विगयर्नु नोजन करवू ए सर्व श्रहित करनार (शीलवतने खंडन करनार) . अर्थात् तत्वज्ञानि माणसे उन्नट वेष, स्त्रीनो संग, स्निग्ध श्रादार श्रने विगयनुं जोजन ए सर्व तालपुट विषनी पेठे त्यजी देवु. ॥६ए ॥ ... तेज वातने दृष्टांतथी दृढ करे. यथा कुर्कुटपोतस्य नित्यं कुललात् जयं जैदा कुकुडपोप्रस्स, निचं कुललन यं ॥ एवं खलु ब्रह्मचारिणः स्त्रीविग्रहात् जयं एवं खं बंनयारिस्स, बिविग्गनयं ॥ ७० ॥ शब्दार्थ- (जहा के०) जेम ( कुक्कुडपोधस्स के०) कुकडाना बालकने ( निच्चं के०) निरंतर (कुलल के०) बिलाडाथी (जयं के०) जय ने. (एवं के) एज प्रमाणे (खु के) निश्चे (बंजयारिस्स के०) ब्रह्मचारिने (शनिविग्गदर्ज के०) स्वीना शरीरथी (नयं के०) जय जे. विशेषार्थ- जेम बिलामो बलथी कुकडाना बालकने पकडीने मारीनाखे ने थने तेज कारणथी कुकडाना बालकने बिलामाथी हमेशा जय रदे तेम ब्रह्मचारि पुरुषोने हमेशां स्त्रीउना शरीरथी जय रहे. श्रर्थात् स्त्रीउना शरीरने जोवाथी ब्रह्मचारिने कामदेव प्रगट थाय .॥७॥ विज्रम करनारं स्त्रीउनुं स्वरूप तो दूर रह्यु; परंतु जीत उपरचितरेबुं स्त्रीनुं रूप पण ब्रह्मचारिए न जोवं, ते कहे . चित्रनित्तिं न ध्यायेत् नारी वा समलंकृतां चित्तनित्तिं न निनाए, नारि वा समलंकियं ॥ जास्करमिव दृष्टवा दृष्टिं प्रतिसमाहरेत् नरकरंपिव दहणं, दिहिं पर्मिसमादरे ॥ १॥ शब्दार्थ-ब्रह्मचारिए (चित्तमित्ति के०) जीत उपर चितरेली स्त्रीनी
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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