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________________ प्रौपदीनी कथा. ३४० प्यो के, “उपाश्रयथी बहार मार्गमां तप कर ए आपणो धर्म नथी. साधुर्जने पण तेवुं तप को वखते करतुं कल्पे बे, पण साध्वीउने कल्पतुं नथी. " पढी सुकुमारीका प्रवर्तनीनां वचननो अनादर करीने नगरनी पासेना बगीचामां जइ जेटलामां सूर्यसामी दृष्टि राखीने तप करवानो प्रारंभ करे बे तेटलामां तेथे एक पुरुषना खोलामां जेना पग बे, बीजो पुरुष जेनो आधार थयो बे, त्रीजो पुरुष जेने पवन नाखे बे, चोथो पुरूष जेना शींगारूप थयो बे ने पांचमो पुरुष जेना मस्तक उपर बत्र धारण करी रह्यो बे एवी देवदत्ता नामनी गणिकाने त्यां आवेली दीवी. ते गणिकाना श्रेष्ठ जाग्यना उत्तमपणानो वैजव जोइने जेनी जोग इछा पूर्ण य नथी एवी सुकुमारीकाए एवं नीश्राएं बांध्युं के " में आचरण करेला या तपनुं जे कांइ फल बे तेना प्रजावथी हुं यावता जवने विषे देवदत्ता गणिकानी पेठे पांच पतिवाली थानं " सुकुमारीका या प्रमाणे नीयाएं करवा पूर्वक तप करती दती ने प्रवर्तनी तेने तेम करतां रोकती हती; तेथी ते सुकुमारीका या प्रमाणे विचार करवा लागी के-" प्रथम या प्रवर्तनी स्वजननी पेठे मने मान श्रापती ने दवणां विना कारणे वैरिणीनी पेठे म्हारो तिरस्कार करे बे. " एम चिंतवीने पोतानी मरजी प्रमाणे चालवाथी जैनमार्गनुं मलिनपणुं एकतुं करती ते सुकुमारीका जूदा उपाश्रयने विषे एकली रहीने व्रतनुं पालन करवा लाग. त्यां माससूधी विधिप्रमाणे संलेखना करी ने पढी मृत्यु पामीने ते सौधर्म देवलोकने विषे नवपल्योपम श्रायुष्यवाली देवी थइ. त्यांथी चवीने ते सुकुमारीकानो जीव, कांपीव्य देशना द्रुपद राजानी मेनका नामनी देवांगनाथी पण अधिक रूपवाली दौपदी नामनी पुत्रीपणे उत्पन्न थइ. अनुक्रमे ते पुत्र यौवन अवस्थाने पामी एटले तेणे पितानी आगल उतम वरनी छायी राधावेध करनारने वरवानुं पण लीधुं. द्रुपद राजाए पण स्वयंवर मंगप श्रारंजी तेमां दूतोने मोकली अनेक राजाउने बोलाव्या. ते वखते पांच पांवो ( युद्धिष्ठिर, जीम, अर्जुन, नकुल सहदेव) पण स्वयंवर मंरूपरूप मानसरोवरने विषे इंसोनी पेठे श्राव्या. पढी अर्जुने राधावेध करवाथी तेने वरवाने तैयार थएली द्रौपदीए लगाथी पोतानी दासीना हाथे अर्जुनना कंठने विषे वरमाला आरोपण करी.
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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