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________________ ३४७ शीलोपदेशमाला. वाला थने फक्त केड उपर एक वस्त्रवाला कोई एक निखारीने जाणे मूर्तिमान दारिजपणुंज होय नहिं शुं ? एम दीगे. पड़ी तेने पोताने घरे बोलावी, स्नान करावी, चंदन चोपडी अने उत्तम वस्त्र धारण करावीने शेठे कडं के, “लक्ष्मीना सरखी था म्हारी सुकुमारीका पुत्रीने विलास करावतो तो सुखेथी अहिंज रहे.” शेग्नां एवां वचन सांजली हर्ष पामेलो ते निखारी जाणे पोते देवतार्नु सुख पाम्यो होय नहिं ? एम मानतो तो शेठना घर जमाश्नी पेठे त्यां रह्यो. रात्रीए शृंगार धारण करेली सुकुमारीका सहित शयन गृहमां गएला ते निखारीने तेना अं. गनो स्पर्श अग्निना सरखो लाग्यो; तेश्री ते “श्रा राक्षसी . "एम मानी तुरत उठी पोतानुं पात्र लहीने नाशी गयो. पठी सुकुमारीका रोवा लागी. ते सांजलीने शेठे धीरज श्रापता उतां पुत्रीने कां के, " श्रा त्हारा पूर्वकर्मनुं फल उत्पन्न थयुं . जो के सूर्य श्राकाशमां जमे बे; गुणवंत जटकीने खावानुं मेलवे ने अने मूर्ख संपत्तिने जोगवे ने ए सर्व पूर्वना कर्मनुज फल माटे हवे मिथ्या शोक न करतां पोताना कर्मनो नाश करवाने अर्थे यत्न कर श्रने दीन मनुष्योने दान श्रापती उती शांत थश्ने म्हारा घरने विषे रहे." पठी समाधिये करीने निश्चल इंडियोवाली अने पोताना कर्मना मर्मने जाणती ते सुकुमारीका जिनेश्वर नगवाने कहेला धर्मर्नु आचरण करती उती पिता सागरदत्त शेषना घ. रने विषे रही. ___ एक दिवस शेउना घरने विषे केटलीक साध्वी गोचरीने अर्थे श्रावी. तेने सुकुमारीकाए नक्तिथी शुझ नात पाणी बहोराव्यु अने पड़ी निर्धन माणस जेम मणि ग्रहण करे तेम विरक्त आत्मावाली ते सुकुमारी. काए साध्वी पासे कर्मरूप वेलने बेदन करनारं चारित्र ग्रहण कसु. वली कर्मने मूलमाथी उखेडी नाखवाने माटे उद्यमवंत थयेली तेणे म्होटुं तप करवानो श्रारंज कस्यो. - एक दिवसे सर्वश्री उग्र एवं तप करवानी श्वाथी स्वस्थ चित्तवाली सुकुमारीकाए वंदना करीने प्रवर्तनी (गुरुणी) ने पूब्यु के, "हुं म्हारा पूर्वना पुष्ट कर्मनो नाश करवा माटे उद्यानमा एकांते रहीने तथा सू. यसामी दृष्टि राखीने तप करवानी इछा करूं तुं.” प्रवर्तनीए उत्तर
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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