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शीलोपदेशमाला. गेरेथी बंधावं, शस्त्रादिकथी नाक कान विगेरेनुं कपा, लाकमी विगेरेथी मरावं अने जीवथी मारी नखावं प्रमुख अनेक प्रकारनां पुःखोने तेमज घणा कालसूधी स्थिर थर रहे एवा अपयशने पामे ने अने परलोकने विषे दारिज, जयंकर रोग, अल्प आयुष्य अने कुरूप विगेरे श्रशुज एवा नरक विगेरेनां कुःखोने पामे . ॥ ६१॥ ६॥
__ हवे शीलथी व्रष्ट थएला पुरुष, दृष्टांत कहे . निरुपमतपोगुणरंजितसुरोऽपि सः कुलवालकः साधुः निरुवमतवगुणरंजिय-सुरोवि सो कूलवाल साढू॥
मागधिकासंगात् गलितव्रतः प्राप्तः कुगतिं मांगदियासंगान, गलियव पाविन कुगं॥३॥
शब्दार्थ-(निरुवम के०) जेनी उपमा श्रापी शकाय नहिं एवा (तवगुण के० ) तपना गुणे करीने (रंजियसुरोवि के ) रंजित कस्या डे देवता जेणे एवो ( सो के०) ते ( कूलवाल के० ) कूलवालक नामनो (साहु के० ) साधु जे जे ते ( मागहिया के०) मागधिका नामनी गणिकाना (संगा के ) संग थकी (गलियवर्ड के०) नाश थयुं ले चारित्रत जेनुं एवो थश्ने (कुग के०) कुगति एटले उर्गतिने ( पावि के) पाम्यो बे. ॥ ३ ॥
विशेषार्थ- जेनी उपमा श्रापी शकाय नहिं एवा तपना गुणथी देवताउने पण रंजन करनार अर्थात् वश्य करनार कूलवालक नामनो साधु, मागधिका गणिकाना संसर्गथी शीलवतथी नष्ट थयो बतो कुगति (न रक गति) ने पाम्यो. ॥ ३ ॥
कूलवालक मुनिनी कथा. जेमनी दमाने जो लडापामेलो नागपति शेषराज पातालमां पेशी गयो डे एवा क्षमावंत केटलाक श्राचार्यो हता. गडोनु पालन करता अने विधि प्रमाणे गुणोने धारण करता एवा ते श्राचार्योंने जेम श्रीमहावीर स्वामीने गोशालो पुर्विनीत शिष्य हतो तेम एक अविनीत शिष्य प्राप्त थयो हतो. खजावथी मुर्विनीत श्रात्मावाला, गुरुनी श्राझाने श्रवली माननारा, वांदरानी पेठे उद्वेग करावनारा अने अस्थिर एवा ते