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________________ ३३६ शीलोपदेशमाला. शब्दार्थ - (विस के० ) र ( विसहर के० ) सर्प विगेरे ( करि ० ) हस्ति ( केसरी के० ) केशरी सिंह ( चोर के० ) चोर ( श्ररि के० ) शत्रु ( पिसाय के० ) पिशाच श्रने ( साइणीपमुद्दा के० ) शाकिनी प्रमुख ( सवि के० ) सर्वे एवाय पण ( असुहनावा के० ) अ - शुनाव अर्थात् अमंगलिक पदार्थों जे बेते ( सीलवंताणं के०) शीलवतने धारण करनाराने ( न पवदंति के० ) पराजव करी शकता नथी. ए - विशेषार्थ - विष, सर्प विगेरे केरवाला जीवो, हस्ति, केशरी सिंह, चोर, वैरी, पिशाच छाने शाकिनी विगेरे सर्व अशुभ करनारा जावो शीलव्रत धारण करनाराने उपद्रव करी शकता नथी. अर्थात् ते शीलवंतनुं शुज करवाने समर्थ थता नथी. कथं बे के तोयत्यग्निरपिनजय हिरपि व्याघ्रोऽपि सारंगति, व्यालोऽप्यश्वति पर्वतोऽप्युपलति क्ष्वेडो - पिपीयूषति ॥ विघ्नोऽप्युत्सवति प्रियत्यरिरपि क्रीडातडागत्यपां नाथोऽपि स्वगृहत्यव्यपि नृणां शीलप्रजावाद ध्रुवम् ॥ १ ॥ अर्थ - शीलत्रतना प्रaar मासने निश्चय अग्नि जलसमान, सर्प पुष्पनी मालासमान, वाघ हरिणसमान, हस्ती अश्वसमान, पर्वत पचरसमान, विष अमृत समान, विघ्न उत्सवसमान, शत्रु मित्रसमान, समुद्र क्रीडा करवाना सरोवरसमान ने अरण्य पोताना घरसमान थाय बे ॥ २९ ॥ शीलवत लीधा पढी ष्ट एलानी दुर्गति कहे. शीलष्टानां पुनः ग्रहणमपि पापतरुबीजं सीलनठाणं पुण नामैग्गढ़पि पार्वतरुवीयं ॥ या पुनः तेषाः तु गतिः तां जानाति केवली भगवान् जा पुण 'तेसिं तु गई, 'तं जाइ केवली नैयवं ॥ ६० ॥ शब्दार्थ - (पुण के०) वली ( सीलप्नाणं के०) शीलनतथी नष्ट थ एलानुं ( नामग्गपि के० ) नाम ग्रहण करवुं ते पण (पावतरुबीयं के० ) पापरूप वृनुं बीज बे. (पुण के० ) वली ( ते सिंतु के० ) ते शीलथी भ्रष्ट थएलानी (जा गइ के०) जे गति थाय बे. (तं के० ) ते गतिने ( जयवं के० ) जगवान् एवा ( केवली के० ) केवलज्ञानी (जाइ के०) जाणे बे. ॥५०॥ विशेषार्थ - शीलवतथी भ्रष्ट थएलानुं नाम लेवुं, ते पण पापरूप वृ
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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