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________________ मूलगाथान. ३३५ नासरखो घोडा वखतमां घाय बे. जेम पुष्पनी साथे वसता तिलपुष्पो पण पुष्पनासरखी गंधवाला थाय बे. ॥ ५७ ॥ दवे शीलर हितने सर्व गुणोनुं दलकापएं कड़े बे. सकलोऽपि गुणग्रामः शीलेन विना न शोनां श्रवहति संयलो व सुंग्गामो, सीले विणा नं सोदमावंदई ॥ नयनविहिनं इव मुखं लवणविहीना रसवतीव नयविद्वणं वें मुदं, लवैणविणा रसवश्व ॥ ५८ ॥ शब्दार्थ - ( सयलोवि के० ) सकल एवोय पण ( गुणग्गामो के० ) गुणनो समूह जे बे ते ( सीखेण विया के० ) शीलवत विना (सोहं के० ) शोजाने ( न वह के० ) नथी प्रगट करतो. त्यां दृष्टांत कहे बे( न वि ० ) नेत्र विनाना ( मुहं व के० ) मुखनीपेठे अने (लवणवा के० ) मीठा विनानी ( रसवश्व के० ) रसवतीनीपेठे शीलरहित पुरुष शोजाने पामतो नयी. ॥ ५८ ॥ विशेषार्थ - जेम नेत्र विना मुख अने लवणविना रसोइ शोजती नथी, तेम उदारता, स्थिरता, गांजीर्य, ज्ञान ने विज्ञान विगेरे सर्व गुणोनो समूह पण शीलविना शोजतो नथी. कस् बे के - ( शार्दूल विक्रिडित वृत्तम्) ऐश्वर्यस्य विभूषणं मधुरता शौर्यस्य वाक्संयमो, रूपस्यो - पशमः श्रुतस्य विनयो वित्तस्य पात्रे व्ययः ॥ अक्रोधस्तपसः क्षमा प्रजवतो धर्मस्य निर्वाच्यता, सर्वेषामपि सर्वकाल नियतं शीलं परभूषणम् ॥ अर्थ - ऐश्वर्यनी शोमा मधुरता, शौर्यनी शोना वाणीनो नियम, रूपनी शोजा शांति, ज्ञाननी शोजा विनय, द्रव्यनी शोजा पात्रदान, तपनी शोमा अक्रोध, अधिपतीनी शोजा क्षमा, धर्मनी शोजा निर्वाच्यता (मौनपणुं ) अने सर्व माणसोनी शोजा सर्वकालने विषे नियमित शील बे. हवे शीलव्रत धारण करनाराउने प्रत्यक्ष फल कड़े बे. विषविषधरकरिकेशरी चौरा रि पिशाचशा किनी प्रमुखाः ॥ विसेविस दर करिकेसरी-चोरारिपिसायसाईणीपमुदा प्रजवंति न शीलवतां सेवेवि असुहनावा, पदवंति ने सीलवंताणं ॥ ५९ ॥ सर्वेपि अशुभजावाः
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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