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________________ ३३४ शीलोपदेशमाला. कल्प बुझिनो पण नाश थयो. ते वखते “ शीलनुं महात्म्य श्राश्चर्यकारी .” एम सर्व दिशामां ऊंचा शब्दथी देवता कहेवा लाग्या. पड़ी मिथ्यात्वने नाश करनारा रोहिणीना उपदेशथी नंदराजा जैन धर्मनेविषे प्रीतिवालो थयो भने चैत्य परिपाटी करवापूर्वक तेने म्होटा उत्सवथी तेना घरनेविषे तेडी गयो. प्रियाना निर्मल शीलथी गर्जना करता धनावह शेठे पण राजानो अने नगरवासी मनुष्यो सत्कार करी सौ सौने घरे मोकल्या. पली धनावद शेठ विगेरे सर्वे मनुष्योए शीलना महात्म्यने जोवाथी मोक्ष लक्ष्मीने थाकर्षण करनारा जैनधर्मनो अंगीकार कस्यो. ए प्रकारे रोहिणी जैनधर्मनी प्रनावना करी, पोताना मनुष्य जन्मने कृतार्थ करी उत्तम कर्मना फलरूप स्वर्गलोक प्रत्ये गश्. इति रोहिणीनी कथा समाप्ता. शीलवंतनो संग करवाथी पण घणा गुणो प्राप्त थाय ने, ते कहे . शीलकलितैः साई संगोऽपि एव बहुगुणावहो जवति सीलेकलिएहिं सैधि, संगोवि हूँ बेदुगुणावदो दो॥ कर्पूरसाध्यात्म्यमपि कुरुते वस्तूनां सुरजित्वं कॅप्पूरससत्तं,-पि कुँण, बबूण सुरदित्तं ॥५॥ शब्दार्थ- (सीलकलिएहिं के०) शीलव्रते करीने संयुक्त थएला अर्थात् शीलवालानी ( सर्कि के०) साथे करेलो (संगोवि के०) संग पण (हु के०) निश्चे (बहुगुणावहो के०) घणा गुणवालो (होश के०) थाय . त्या दृष्टांत कहे - (कप्पूरसश्चत्तंपि के०) करिनी सानो वास पण (क्रूण के०) स्पर्श थएली बीजी वस्तुउँने (सुरहित्तं के०) सुगंधवाली (कुण के०) करे . ॥ ५ ॥ विशेषार्थ- जेम करिना सुगंधथी स्पार्शत थएली बीजी वस्तु सुगंधवाली थाय डे, तेम शीलवंतनी साथे करेलो संग पण घणा गुणवालो थाय जे. अर्थात् शीलना गुणने प्रगट करनारो थाय . कडं ले केजो जारिसेण मित्तिं, करे अचिरेण तारिसो होश ॥ कुसुमेहिं सह वसंता, तिलावि तग्गंधिया ढुंति ॥ अर्थ-जे जेनी साथे मित्रा करे जे ते ते
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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