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________________ ३०४ शीलोपदेशमाला. तेम तापसना आश्रमने दीगे. पनी तेणे त्यां जर तापसने पूज्युं के, "हे जगवन् ! तमे था वनमां को पुःखी एवी एक स्त्रीने दीठी जे?" तापसे कयु. “ हे ना! त्हारे तेनुं शुं प्रयोजन ?” दत्तशेठे उत्तर थाप्यो के, “म्हारे अग्निमां बली मरता एवा शंखराजाना प्राणते स्त्रीथी रक्षण करवू ." पड़ी तापसे “ राजानी सहाय्यथी मुनिर्जना श्राश्रममुं रक्षण थाय .” एम धारीने दत्तशेठने पुत्रसहित कलावती देखाडी. जागता शोकवाली कलावती पण दूरथी दत्तशेग्ने जोश्ने श्राकाशने पूरी देनारा एवा म्होटा शब्दे रोवा लागी. दत्तशेठे कयु. “ ब्देन ! तुं रोश्श नहीं; कारण तने श्रा पूर्वजवनुं फल प्राप्त थयु हतुं. जिनेश्वरो पण पूर्वजवने विषे करेला कर्मने जोगव्याविना मूका शकता नथी. माटे हे विवेकवाली ! हवे तुं धीरज राखी रथ उपर बेश अने त्हारा पोताना दर्शनरूप अमृतदृष्टिथी ऊट राजाने शांत कर. वली पस्तावो करता एवा शंखराजा तुरत श्रमिमां प्रवेश करवा तैयार थया हता; परंतु त्हारी आशाथी फक्त आजनो दिवस रोकी राख्या ." पली कुलीन एवी कलावती मान त्यजी दर पोताना पति उपर दया श्राववाथी कुलपतिनी रजा लश् त्यांथी चाली निकली. कलावतीनुं हित श्वनारा कुलपतिए पण थाशिष आपीने तेने रजा श्रापी. पड़ी पुत्रसहित कलावतीए दत्तशेग्नी साथे प्रयाण कखं. शंखराजाए पोताना नगर पासे कलावतीने श्रावी सांजली श्रांखोमां श्रांसुने वरसावतो तो तेना सामो जश्ने था प्रमाणे कहेवा लाग्यो. हे जले ! तुं निर्दोष बतां में तने विटंबना पमाडी . हे देवि ! में तने वनमां त्यजी दीधी ए म्हारा उराचरणने माफ कर.” या प्रमाणे कहेता एवा शंख राजाए अत्यंत प्रसन्न थश्ने महोत्सवपूर्वक पोतानी प्रियाने नगरमा प्रवेश कराव्यो. नगरवासी लोको अने अंतः पुरनी स्त्रीउथी घेरायली कलावती जयंत पुत्रसहित इंसाणीनी पेठे पुत्रसहित अंतःपुरमा श्रावी. पडी राजाए स्वप्नना अनुसारथी बारमे दिवसे पुत्रनुं पूर्णकलश एवं नाम पाड्युं. - एक दिवस एकांतमां बेठेली कलावतीए शंखराजाने कर्वा के, " हे खामिन् ! तमे कया दोषयी मने एवो दंड थाप्यो हतो?” राजाए खजाथी
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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