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________________ कलावतीनी कथा. ३०३ एवा गजशेठे कालक्षेप करवामाटे तेने मधुर वचनथी कत्युं के, "हे देव ! जो तमारे कलावती महादेवीनी इच्छा होय तो पुण्य करो के" जे पुण्यना प्रजावी पूर्वजवने विषे मेलवेली म्होटी आपत्ति दूर थाय. वली या उद्यानने विषे चिंतित फल आपनारी श्रीजिनेश्वर प्रजुनी मूर्ति बे, तेनुं पूजन करो. तेमज श्रहिं महा तेजवंत एवा मुनीश्वर दवणां पोतानुं कल्याण करवानी इछाथी तप करे बे, तेमने वंदना करो.” गजशेवनां श्रावां वचन सांगली शंखराजा जिनेश्वरनुं पूजन करी ने मुनिराजने वंदना करी तेमना श्रगल बेठो पढी मोहनी इछावाला ते मुनिए राजानो जाव जाणीने मधुर वचनथी संसारनो नाश करनारी धर्मदेशना पी. ते या प्रमाणे हे नव्य जनो ! संसाररूप धरण्यने विषे पूर्वकर्मरूप वायुथी प्रेरायला जीवो ब्रांति पामेला मृगनी पेठे वृथा जमे बे. वली या सुख बे, श्रा सुख बे, एवी प्रांतिथी पगले पगले दुःखमां पडता जीवो संसारने विषे वायुए उराडेला खाखराना पांदमानी पेठे क्लेश पामे बे. हा ! संसारथी उद्वेग पामेलो एवो पण प्राणी, या लोकमां ने परलोकमां कल्पवृक्षनी पेठे सुख श्रापनारा जिनेश्वर प्रजुना उपदेशने सांजलतो नथी. माटे हे राजन् ! श्र दुर्व्वम एवा मनुष्य जवने पामीने तुं वृथा खेद न कर. वली तुं निश्चय थोमा वखतमां पृष्ट सुख पामीश. " मुनिराजनां वां वचन सांजली तुरत दर्ष पामेलो राजा विश्रांति माटे ते रात्री त्यांज रह्यो पछी पाडली रात्रीए स्वप्न जोश्ने जागी उठेलो राजा गुरुपासे जश्ने कदेवा लाग्यो के, " हे प्रजो ! काचा एक फलवाली वेल कल्पवृक्ष उपरथी पमी गइ अने पूर्ण फलवाली ते वेल फरी तेज कल्पवृक्ष उपर चडी गइ; एवं में आजे खप्न दीव्रं.” गुरुए कयुं. "हे राजेंद्र ! तुं कल्पवृक्ष बेने त्हारी प्रिया वेलरूप बे. पुत्रने जन्म श्रापनारी ते हारी प्रिया फरी तने प्राप्त यशे. " पी प्रसन्न थयेला राजाए तुरत पोताना नगरप्रत्ये श्रावीने पायदल ने खारोसहित दत्तशेठने पोतानी प्रियाने शोधी लाववानो हुकम को. दत्तशेठ पण चारेतरफ नजर राखी वनेवन ने वृदेवृक्ष प्रत्ये शोध करतो हतो एवामां तेणे समुद्रमां रहेलो माणस जेम बेट देखे
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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