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________________ २६ शीलोपदेशमाला. दवदंती सर्व कल्याणना पात्ररूप थशे.” मुनिनी श्रावी मनोहर वाणी सांजली आनंदयुक्त थएलो नल अनुक्रमे नगरवासी जनोए मंगलमय करेली पोतानी राजधानी प्रत्ये श्राव्यो. त्यां ते निर्लज मनवालो नल नवीन नवीन क्रीडावडे दिवसोने दीनसमान अने रात्रिने दणरूप करवा लाग्यो. पली निषध राजाए नलने राज्य सोंपी कूबरने युवराज पदवी थापी पोते अखंडित एवा चारित्रने पाली देवपदवी प्राप्त करी, त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ, काम, )नुं साधन करवामां व्यग्र चित्तवाला नल राजाए सती दवदंती सहित पिताए श्रापेला अखंडित राज्य पालन करता अर्धा जरतक्षेत्रने पोताने स्वाधीन कमु; तेथी सर्वे राजाउँए एका थश्ने तेने कृष्णनी पेठे फरीथी राज्याभिषेक कस्यो. पड़ी पुष्ट हृदयवालो क्रूर कूबर राज्यनी श्वाथी शीयाल जेम सिंहना बिड खोले तेम निरंतर नल राजाना निज खोलवा लाग्यो. __एक दिवस निर्मल मनवालो अने बंधमोक्षादिकने जाणनारो नल राजा उष्ट हृदयवाला पोताना ना कूबरनी साथे सत्पुरुषोने खजा पमाडनारी द्युतक्रीडा करवा लाग्यो. गाम, गरास, नगर विगेरे सर्व हारी गया बता पण ते निवृत्ति पाम्यो नहीं. श्रावा पुष्ट श्राग्रहमा वलगी रहेला पोताना पतिने जाणीने नीमकसुता दवदंती पोते नलराजा पासे श्रावीने मधुर वाणीथी कहेवा लागी. " महेंना सरखा वैजववाला हे खामिन् ! तमारे द्यूतक्रीडामां आ व्यसन शुं ? कयो पुरुष दूध खाधीन बतां कांजी पिवामां थासक्त थाय ? हे नाथ ! पुष्ट हृदयवाला कूबरने खाधीन था पृथ्वी न करो ? तमे नथी जाणता के बगलो पाणीमां पेठा पली मत्स्योनी शी गति थाय जे?" या प्रकारे प्रियाए तथा प्रधान वर्गे निवाख्या बता पण नलराजा द्यूतथी निवृत्ति पाम्यो नहीं. कर्वा डे के-दैव कोप पामवाथी प्राणिउनी शी मति थाय ? अनुक्रमे दैवना योगथी नलराजा देहना थाजरणोने अने बेवटमां अंतःपुरसहित दवदंतीने पण हारी गयो. पड़ी हर्ष पामेला कूबरे नल राजाने कयु. “हे जाई! हवे तुं म्हारी पृथ्वीमां रहीश नहीं.” ए उपरथी नलराजा फक्त एक वस्त्र धारण करी त्यांची चाली निकल्यो. पड़ी पतिनी पाउल जती एवी जीमकपुत्रीने
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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