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________________ श्य शोलोपदेशमाला. वेला माणसो क्यारेक नूत, प्रेत अने राक्षस थएला संचलाय बे; तेम श्रा स्त्री पण तेवीज देखाय बे के शुं? हाय ! हाय ! शुं म्हारी प्राणप्रिया खरेखरी राक्षसी हशे ! ना ना एम संजवतुं तो नथी; कारण के ते तो अहिंज सूतेती बे. या प्रकारे प्रियासंबंधी संकल्प करता एवा ते रा. जकुमारे ऋषिदत्ताने जगामी. इषिदत्ता जागी उठी एटले कनकरथे कडं. “हे प्रिये ! जो तुं म्हाराथीबानुं न राखे तो हुँ तने कंश पूडं !” ऋषिदत्ताए उत्तर प्राप्यो के, "हुँ सत्यज कहीश; माटे जे पूq होय ते पूडो.” पनी राजकुमारे कडं. "हे प्रिये ! आज रातमा कोइए एक पुरुषने मारी नाख्यो डे अने वली रहारं म्हों लोदीथी खरमायेनुं बे; तो हे जसे ! तुं को राक्षसी मुनिनी पुत्रीपणाने पामेली बु ? था हारां प्रत्यद आचरण जोश तने रा. इसी कोण नहिं जाणे ?” - आ प्रकारनां पतिनां वचन सांजलीने अत्यंत जय पामेली अने पोतार्नु मुख जोश दीन नेत्रवाली बनेली ऋषिदत्ताए उत्तर प्राप्यो के,“ हे स्वामिन् ! जो हुँ प्रथमथी मांस खाती होत तो बाजे तेवी श्वा थात." पली कनकरथ कुमार मनमां विचार करवा लाग्यो के, “था स्त्री को पुरुषने मारी नाखे एवात संजवती नथी; कारण के जे तेवी वात बोलवामां समर्थ नथी तो पड़ी करवामां केम समर्थ थाय? माटे निश्चय पूर्व कमना अनुनावथी तेना को वैरीए था कामकखु .” इषिदत्ताए कह्यु. " हे स्वामिन् ! जो आपने म्हारो विश्वास न आवतो होय तो सर्प डशेला शरीरना एक नागनी पेठे तेनो तपास करो.” कृपाना समुअरूप अने विवेकी कुमारे कडं. "न! हुँ तने बीजना चंजनी पेठे दोषरहित जाणुं बुं.” श्रावी रीते खल पुरुषना मुखने मुजित करवाने अर्थे अमृतवाणीथी बोखता एवा ते राजकुमारे पोते ऋषिदत्ताना मुखने धोश् नाख्यु. पड़ी सुलसा योगिनी हमेशा एक माणसने मारी ऋषिदत्ताना मुखने रुधिरथी खरमी अने तेनी पासे मांस मूकी नासी जवा लागी. राजकुमार पण हमेशा मांसने फेंकी दर प्रियानां मुखने धोश नाखवा लाग्यो. एक दिवस हेमरथ राजाए क्रोध करीने प्रधानोने कयु के, "अरे
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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