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मदनरेखानी कथा.
रएए मणिरथ राजाए मोकलावेली पुष्प तांबूलादि नेटोने जेठना प्रसादरूप गणीने ग्रहण करती हती. __ पड़ी को एक दिवसे मणिरथ नूपतिए पोतानी पूती मदनरेखानी पासे मोकली; तेथी ते त्यां जश्ने कहेवा लागी के, “हे न ! त्हारा गुणोथी अनुरक्त थएला महाराजा तने एम कहे जे के,हे सुत्र! गोखमां उन्नेली तने ज्यारथी में दीठी त्यारथी मांडीने म्हारी एक घडी वर्ष समान जाय जे तो तुं मने पतिरूप मानीने पट्टराणी पद नोगव." आवां राजाए कहेलां वचन पूतीनां मुखथी सांजलीने धर्मनी जाण एवी मदनरेखाए कह्यु. “ केटलाक सत्पुरुषोनु मन परस्त्रीउमां जतुंज नथी अने तेवा केटलाक पुरुषोनुं मन तो पुत्रनी स्त्रीनेविषेपण शासक्ति पामे . स्त्रीउमां शीलव्रतरूप जगत्प्रसिझ महागुण जे. तेनो नाश थयाथी तो जीवरहित देहनी पेठे जीवq पण वृथा जे.जेने पोतानो नाश् ज्येष्ठबंधु तथा राज्यस्वामी मानीने निरंतर नमन करे बे; ते अ॒ म्हारी प्रार्थना करे खरो? हे ति ! त्हारे म्हारा वचनथी राजाने कदेवू के,तुं पोताना न्हाना जाश्नी स्त्रीने या प्रकारनो संदेशो मोकलतां लाज न पाम्यो ?" पूतीए था सर्व समाचार राजाने कह्या; परंतु जेम मद्यपान करनारो पोताना व्यसनने त्यजे नहीं तेम ते पोतानोश्राग्रह न त्यजता विचार करवा लाग्यो के, “ज्यांसुधी न्दानो ना जीवतोडे त्यांसुधी निश्चय ए स्त्री म्हारे वश्य थनारी नथी." एम धारीने ते पोताना न्हाना नाश्ने मारी नाखवाना उपायो शोधवा लाग्यो. ___ एवामां थांबानां अंकुरोधी मदोन्मत्त थएला कोकिलाना शब्दोए सूचवेलो भने युवराज कामदेवसहित वसंत नामनो ऋतुराजा श्राव्यो. अर्थात् वसंतऋतु श्राव्यो. ते वखते वृक्षनी वेलना समूहने विषे जाणे ते राजा वसंते साझा करेलो कोश् पुरुष होय नहिं शुं? एवो मलयाचलनो चतुर पवन फरवा लाग्यो. मदोन्मत थएला जमरो ऊंकार शब्दवडे गीत गावा लाग्या अने वृदो जाणे पसवोरूप हस्तने लांबा टुका करीने नृत्य करता होय नहिं शुं ? एम देखावा लाग्या. वली प्रफुद्धित थतां एवा कलीउना पुष्पोनी सर्वे वृदो जाणे वसंतने नेटुं श्रापता होय नहिं शुं ? एवा देखाता हता. ते वखते रातां पुष्परूप