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________________ २०० शीलोपदेशमाला. कुसुंबी वस्त्रने धारण करनारी अने श्वेतपुष्पना हारवाली वनलक्ष्मी प्राप्त थर. पनी इंशाणीसहित उनी पेठे मदनरेखासहित युगबाहु वसंत लदमीने सफल करवा माटे उद्यानमां गयो. त्यां आखो दिवस पुष्पना समूहने एकठा करवा दिक क्रीडा करीने पड़ी ते रात्रीए प्रियासहित कदलीगृहमा निश्चिंतपणे सूतो. राजा मणिरथ पण अवसर जाणीने खड्ग लश् केटलाक माणसो सहित गुप्तरीते ते कदलीगृह प्रत्ये श्राव्यो. त्यां तेणे कुलनी मर्यादानो त्याग करी, यश, धर्म अने लगा वि. गेरेने बोडी दश पोताना बंधुना कंठने विषे खड्गनो प्रहार कस्यो. अरे धिकार ने कामना उदयने ! के,जेने वश थएला राजाए पोताना नाइने पण गण्यो नहीं! पड़ी मेदनरेखा करुणस्वरथी सोर करवा लागी एटले सेवको दोडी श्राव्या; पण राजा तो तत्काल बानी रीते पोताने घेर जतो रह्यो. पली प्राणने नाश करनारा प्रहारने जाणीने सती मदनरेखा पोताना पतिना कानमां कहेवा लागी. " हे महानाग! तमे जरा पण वृथा खेद पामशो नहीं; कारण के, सर्वे प्राणि पोताना पूर्वे करेला कर्मने जोगवे . मृत्यु पामवाने तैयार थर रहेला मनुष्य को उपर वेष करवो नहीं; कारण वेष करवाथी कंश वलतुं नथी; परंतु उलटो ते परलोकश्री ब्रष्ट थाय . हे नाथ ! मनने समाधीमा राखी जिनेश्वर प्रजुनुं शरण करो. ममतापणुं मूकी द्यो अने सर्वे प्राणिउने विषे मैत्री करो. वली एम पण चिंतवन करो के, “ म्हारे था लोकमां तथा परलोकमां अरिहंत प्रजु देव, साधु गुरु थने जिनेश्वर प्रणित धर्म था. हे प्राणवबन! सिकादि सादिवाला पोताना पुराचरणने नींदो अने सर्व स्थानकेथी मोहनो त्याग करी पंच नमस्कार- स्मरण करो. जेने माटे शास्त्रमा कडंडे के प्राणा यस्य नमस्कारं, स्मरतः प्रातमियति ॥ .. न याति यदि मोदं स, ध्रुवं वैमानिको जवेत् ॥ अर्थ-जे मनुष्यना प्राण नवकारनुं स्मरण करतां जाय . ते माणस कदापि जो मोक्ष न पामे तो ते निश्चय वैमानिक देवता तो थाय. वली हे नाथ ! पंच अणुव्रत, चार शिक्षाबत, अने त्रण गुणव्रत ए . रूप श्रावकना बार व्रतने ग्रहण करो. जगत्मां प्राणीउने मित्र, पुत्र
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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