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________________ २० शीलोपदेशमाला. विशेषार्थ- अतिचार रहित एवं श्रेष्ठ ब्रह्मचर्यव्रत पासवाथी निर्मल यएली स्त्री माता, पिता अने ससराना ए त्रण्ये कुलोने निर्मल करे . अर्थात् त्रण्ये कुलोने प्रकाश करे जे. वली ते स्त्री कुलोनो प्रकाश करी पोतेज केवल वखाणवा योग्य थाय ने एम नहि, पण ते स्त्री थालोकमां कीर्ति श्रने परलोकमा जेनी बरोबर बीजं को पण सुख थश् शकतुं नथी एवा वर्ग अथवा मोदना सुखने पामे . अर्थात् था लोकमां ब्रह्मचर्यना माहात्म्यथी मनुष्योमां वखाण पामे बेथने परलोकमां ब्रह्मचर्यना सामर्थ्यथी वर्ग अथवा मोक्षना सुखने पामे ॥ ७ ॥ या निजकांतं मुक्त्वा स्वमेऽपि न ईहते नरं अन्य जानियेकंतं मुत्तं, सुविणेवि न ईईए नर अन्नं ॥ आबालब्रह्मचारिणां सा ज्ञषीणामपि स्तवनीया आबालबंनयारी-ण सो रिसीपि वणिजा॥४॥ शब्दार्थ- (जा के०) जे स्त्री (नियकंतं के०) पोताना खामीने (मुत्तुं के०) मूकीने अर्थात् पोताना स्वामी विना ( सुविणेवि के) स्वप्नने विषे पण (अन्नं नरं के०) बीजा पुरुषने ( न ईहए के०) नथी श्वती. ( सा के) ते स्त्री (थाबालबंनयारीण के०) जन्मथी मांडीने ब्रह्मचारी एवा ( रिसीणंपि के०) झषियोने पण (थवणिजा के०) स्तुति करवा योग्य .॥ ४ ॥ विशेषार्थ- जे स्त्री पोताना पतिने मूकीने अर्थात् पोताना स्वामी विना खप्नमां पण बीजा पुरुषने नथी श्वती. अर्थात् जे स्त्री जन्मथी मांडीने मन वचन कायाए करी पोताना पतिनेज सेवे. ते महासती स्त्री जन्मश्री मांडीने ब्रह्मचारी एवा महर्षि पुरुषोने पण स्तुति करवा योग्य थाय . ॥ ४ ॥ हवे शील नहि पालनारी स्त्री माटे कहे जे. परपुरुषसेविन्यः कुतरमण्यः नवंति यदि लोके परपुरिससेविणीन, कुलरमणी देवंति जर लोए तदा वेश्यादाशीनां प्रथमारेखा कुलवधूषु तो वेसीदासीणं, पढमारेदा कुलवदूसु ॥४॥
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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