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________________ वकचूलनी कथा. ԵԱ वेला बीजा कोई दुश्मनो बे ? " श्रावा विचारथी हुं व्हारा लुगडां पहे पुरुषनो वेश धारण करी सजामां गइ. त्यां घणो वखत तेज॑नो नृत्य जोने पढी द्रव्य वस्त्र विगेरेथी तेउने संतोष पमाडी घरे श्रावी प्रमादने लीधे पुरुषनो वेश त्याग करया शिवाय हुं तेमनी तेमज म्हारी जोजाइ नेगी सुइ गइ. " कचूले क. " धन्य बे ते गुरुजने के, जेमणे मने तारवाने माटे नियमो श्राप्या बे. प्रथम अजाण्यां फल खावां ए नियम पवाथी तेमणे म्हारो पोतानोज उद्धार कस्यो बे. बीजी जीवहिंसा करतां सात पगला पाढा खसवाना नियमे करीने मने व्हेन तथा स्त्री हत्याथी बचाव्यो छे. अहो ! तेज महात्मा जाणवा के, जे पोते तरे वे अने बीजाने तारे बे. वली धिक्कार तो श्रमनेज बे के, जे श्रमोए तेमनो धर्मोप्रदेश पण सांजल्यो नहीं. " sa सर्वे म जवाथी पोते एकलो रहेलो वंकचूल शत्रुना ज यी पलीनो तृणनी पेठे त्याग करी उजयिनी नगरीमां आव्यो. त्यां पण कोइ शेठने घेर पोतानी बहेन तथा स्त्रीने मूकीने पोते चोरीनो धंधो करवा मांड्यो. चोरी करवामां कुशल एवो ते हमेशां धनवंतोनां घरमां खातर पाडतो; परंतु क्यारे पण पकडातो नहीं. एक दिवस तेणे विचार करयो के, " एक कोडीने माटे पण पोताना पुत्रोने मारनारा एवा वेपारीना धनने धिक्कार बे. परद्रव्यना लालचु एवा निक्कुक ब्राह्मणो पण उपेक्षा करवा योग्य वे तो पढी थोडामांथी थोडं चोरी लेनारा सोनी लोकोनी तो वातज शी करवी. वली उत्तम पुरुषोने निंदा करवायोग्य एव वेश्यानुं धन शा कामनुं बे ? कारण के, जे वेश्या धननी इछाथी कोढी या माणसने पण कुबेर सरखो माने बे. माटे हवे चोरी करवी तो राजाने घेरज करवी. कारण जो ते सफल थाय तो छा दय द्रव्य मले ने सफल न थाय तो दीर्घ कालनो यश मले. " एवो विचार करीने वर्षाकालने विषे ते वनमांधी एक धरोली लाव्यो अने तेना पुंडाने कालीने राजाना मेडेल उपर चढ्यो. त्यांथी ते तत्काल राजाने रहेवाना मंदिरमां गयो. त्यां तेने कोइ एक मनोहर स्वरूपवाली स्त्रीए दीठो ने पूब्यं के, “ तुं कोण बे ? ” वंकचूले जवाब थाप्यो के, २४
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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