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________________ १२ शीलोपदेशमाला. रीमां चंद्रछाय नामनो राजा थयो. ते नगरीमां जिनधर्ममां निश्चल प्रीतिवालो नयसार नामनो शेठ रतो हतो. एक वखते ते शेठ वहाणमां बेसीने बीजा देशमां वेपार करवा जतो हतो. दवे एवं बन्युं के एक वखते इंद्र पोतानी सजामां बेठो बेठो ते नयसार शेवनी जैनधर्ममां रहेली क्तिना वखाण करतो इतो; तेथी एक देवने इर्ष्या उत्पन्न थ; तेथी ते देव नयसार शेवनुं वहाण समुद्रमां जतुं हतुं, त्यां श्राव्यो ने वाणने घणुंज कंपाववा लाग्यो पढी शेठनी धर्ममां दृढता जोवाने माटे ते बोल्यो के " हे शेव ! जो तुं जैनधर्म बोडी दइने म्हारो आश्रय करे तो हुं व्हारा वहाणने तारुं; नही तो बृहुं जाण. " प्राणजवाने वखते कयो बुद्धिवान् माणस थालोकाने परलोकमां सुख श्रापनारा श्रीजैन धर्म त्याग करे ? अर्थात् कोइ करे नहीं. तेम ते शेठे ज्यारे जैन धर्म त्याग न कस्यो; त्यारे ते देव प्रत्यक्ष रूप धारण करीने उनो रह्यो ने स्वर्गमां येली वात कही तेनां वखाण करवा लाग्यो. पढी ते देव "देवतानुं दर्शन निष्फल न होय. " एम कही नयसार शेठने रत्नजडीत चार कुंडल थापी स्वर्गमां गयो अने नयसार शेठ कुशलपणाथी समुSने उतरी मिथिला नगरीमां श्रव्यो. त्यां तेणे कुंजराजाने बे कुंडल जेमां श्राप्यां, कुंजराजाए पण पोतानी पासे उजेली मल्लि कुमारीने ते कुंडलो यां. पी ते नयसार शेठ क्रय विक्रय ( लेवा देवारूप वेपार ) कने पालो पोतानी पृष्ठचंपा नगरीमां श्रव्यो अने त्यां पण तेणे चंद्रछाय राजाने वे कुंडल श्राप्या. ते राजाए नयसार शेवने श्राश्चर्यश्री पूब्युं के, " या कुंडल तमने क्यांथी मल्या ?" नयसारशेठे कुंडलनी प्राप्तिनी वात कही अनेक के, " बे कुंडल कुंजरानी पुत्री मल्लिकुमारी ने श्राप्यां बे; पण हे राजन् ! ते मल्लि कुमारीना रूपनुं वर्णन एक मुखश्री कर शकाय तेम नथी, एवी ते रूववंती बे.” नयसार शेठनां एवां वचन सांजली पूर्व जवना स्नेहथी वश थयेला ते राजाए पोते मल्लिकुमारी ने परणवा माटे पोतानो दूत कुंजराजा पासे मागुं करवा मोकल्यो. हवे पूरण मित्रनो जीव वैजयंत देवलोक थकी चवीने श्रावस्ती नगरीमां रुक्मी नामनो राजा थयो. तेने धारणी नामनी स्त्री हती. एक दीवसे ते रुक्मी राजाए पोतानी पुत्रीनुं घणुंज मनोहर रूप जोश्ने आश्चर्यथी पोतानो
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
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