SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मल्लिनाथनी कथा. २१ दीधी अने कह्यु के, “ अज्ञानरूप कांजवाथी बांधला थयेला तथा काम सुखनी ब्रांतिये करीने तरश्या थयेला प्राणी संसाररूप वनने विषे मृगनी पेठे जमे बे अने धन्य पुरुषो हजारो पुःख आपनारा श्रा संसारने तृणनी पेठे त्याग करीने स्वर्ग तथा मोद थापनारी जैनी दीक्षाने हर्षथी ग्रहण करे .” मुनिनी एवी देशना सांजली राजा विचार करवा लाग्यो के, “ म्हारे राज्यना जारने धारण करे एवो पुत्र हजी थयो नयी; नहीं तो हुँ दीदा अंगीकार करत.” एवी रीते विचार करता राजाने जोश्ने मुनिए फरीथी कां के “ कर्मर्नु बल विजयवंत बतां त्हारा हृदयमां था शीचिंता उत्पन्न थ? वली सुखनुं कारण बालपणुं, यौवनपणुं के वृद्धपणुं नथी; पण सुख दुःख- कारण तो पूर्व नवमां संपादन करेलु कर्मज . तिर्यंचोने, जेनुं को रक्षण करनार नयी एवाने, तथा रोग विगेरेथी व्याकुल थयेला देहवालाने, वनमा पूर्वना कर्म विना बीजु कोइ पण रक्षण करनार नथी; माटे हारे पण राज्यना नारने धारण करवाने समर्थ पुत्रनी चिंता करवी ते फोगट बे; कारण के सर्वे प्राणि पोतपोतानां करेलां कर्म नोगवे . वली जीवीत वायुए कंपावेला वडना पांदडानां सर चंचल , यौवन विजलीना सरखं चपल , शरीश क्षणिक नाश पामवाना खनाववायूँ बे, प्रेम दर्न उपर रहेला पाणी जेवो चंचल अने वैजवो पण अस्थिर , माटे आत्महित करवं. कारण के कोश् कोनुं नथी." पड़ी जेना संकल्प विकल्प नाश पाम्या एवा ते बलराजाए चारित्र ग्रहण कडं. पढी तपथी कर्मनो दय करी, सर्वने खमावी अने अंते केवल ज्ञान उत्पन्न करी ते बल मुनीश्वर मुक्तिरूप स्त्रीना श्रृंगारपणाने पाम्या. पडी प्रधान अने सामंतोए सारा मुहूर्तमां महाबलने राज्यासन उपर बेसाड्यो; तेथी ते पण बलराजानी पेठेज राज्य करवा लाग्यो. तेमज जेणे प्रतापथी शत्रुजेने त्रास पमाड्या बे एवो अने इंजियो सहित प्राणनी पेठे उ मित्रयुक्त एवो ते पोतानी प्रजानुं रक्षण करवा लाग्यो. केटलेक दीवसे ते महाबलनी स्त्री कमलवतीए सर्व अंगथी उत्तम लक्षणवाला पुत्रने पूर्व दिशा जेम सूर्यने जन्म आपे तेम जन्म श्राप्यो. महाबल राजाए म्होटो जन्म महोत्सव कस्यो अने बारमे दीवसे तेनुं
SR No.023404
Book TitleShilopadesh Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala
Publication Year1900
Total Pages456
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy