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________________ ६६३. संख्यावाचक शब्दो बे-सं. द्वे (१. २४.) एकलं ज द्विवचन- रूप अपभ्रंशमां छे. छतां य तिण्णि (७. ६.) नी भ्रान्तानुकृतिए करीने विष्णि ( १. २६.) बेण्णे (१. ११२)=सं. द्विनि* संख्याक्रमपूरक शब्द-पढम (२. ७१.) पहिल्ल ( २. ७२.) बीय (२. ६.) तइय (५. २३३.), चउत्थ (६. १५८.) पंचम इ० क्रियासंख्यावाचक शब्दः-एकवार, दुवार, तिवार, बहुवार क्रियारीतिसंख्यावाचक शब्दः-एक्कविह, दुविह, तिविह इ० एक्कसि (एकशः टि. पान, ११२. उपर शीलांकमांथी उदाहरण) ६६४. विशेषणनां तुलनावाचक रूप संस्कृतनी माफक तर अने तम लगाडवाथी थाय छे. केटलोक वार सादां ज विशेषणो तुलना माटे वपराय छे. केटलीक वार तुलनावाचक रूप सीधां ज संस्कृतमांथी लेवामां आवे छे. दा. त. कणि? (४.१७२), पाविट्ठ (५.२०३) इ० ३. क्रियापदरूप ६६५. संस्कृतमां दृष्टिगोचर थता क्रियापदना सूक्ष्म अने बहुविध रूप. भेदो अपभ्रंशमां अदृश्य थाय छे. आपणे नामनां रूपोमां जोयु के अकारान्त नाम ज अपभ्रंशमां प्राधान्य भोगवे छे, ज्यारे बीजा स्वर के व्यंजनना अन्त. वाळां, संस्कृतमां भिन्न भिन्न विभक्तिरूपो धारण करतां नामो अपभ्रंशमां लगभग अदृश्य ज थाय छे अने रह्यांसह्यां अकारान्तने ज अनुवर्ते छे. ते ज प्रमाणे अपभ्रंशमा अ विकरणप्रत्यययुक्त प्रथमगण प्राधान्य भोगवे छे, ज्यारे क्रियापदना बीजा गण अदृश्य थाय छे. आत्मनेपद लुप्त थई जाय छे; कोइ वार संस्कृतना अनुकरणमां वपराय ए वात जुदी. दा. त. पिच्छए, लुब्भए, लक्खए इ० (६. ७४-८८.). ते ज प्रमाणे कृदंतोमां कोइ वार आत्मनेपद देखा दे छे. दा. त. वट्टमाण (६. १५८.) पविस्समाण (६. ७४.) इ. उपरना दाखलाओ परथी ए पण जणाशे के केटलोक वार भात्मनेपदनी भ्रान्तानुकृति पण भावां रूपोमां देखाय छे. ६६६. अपभ्रंशमां केटलाक काळ पण देखा देता नथी. भूतकाळ-अद्यतन, बस्तन अने श्वस्तन त्रणे य गूम थाय छे. क्रियातिपत्त्यर्थ (conditional) पण
SR No.023391
Book TitleApbhramsa Pathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherGujarat Varnacular Society
Publication Year1935
Total Pages386
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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