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अदृश्य थाय छे. आसि (आसीत् (६. ९३.) एकलो देखा दे छे. त्रणे य पुरुषमां आसि नो ज प्रयोग थाय छे. दा. त. हउं आसि घित्तु विवाए जिणेप्पिणु । (५. १९४.); णउ जक्खहं रक्खहं किन्नराहं लइ इत्थु
आसि संचरु नराह । (६. ५७.) इ. भूतकाळ कर्मणि भूतकृदंतनी मददथी दर्शावाय छे, जेनां दृष्टांतो तो सामान्य छे...
६६७. क्रियापदना गणोना अवशेष क्यांक क्यांक अपभ्रंशमा रह्या छे. दा. त. जिणइ (५. १९४.) कुणइ (१०. ४०.) थुणइ (स्तुनोति * ६. १६८.) बिहेइ (१०.७.) णासइ (५. २१८.) णच्चइ (१. १०२)इ० केटलीक वार भूतकृदंतने ज बारोबार धातु बनाववामां आवे छे. दा. त. कड्ढा (३. ११०.) ओलग्गइ (५. २०.) उलुका (१.४९.) इ.
६ ६८. प्रत्ययान्त धातु (Derivative Roots) अपभ्रंशमा अस्तित्व धरावे छे. प्रेरकरूप (णिजन्तः), पौनःपुन्यदर्शक धातुरूप (यङन्तः) अने नामधातु अपभ्रंशमां मालम पडे छे. ते उपरांत ध्वनिक्रियापदो पण देखा दे छे. इच्छादर्शकधातुओ खास मालम पडता नथी, [१] प्रेरकधातुओ-पइसारइ (२. १.) विउज्झावइ (३. ८८.) पहा.
वइ (२. १३१.) नच्चावइ (३. २१.) इ० । [२] पौनःपुन्यदर्शक धातु-मरुमारइ (३. ७४; ३. १४९.); जाजाहि
(३. १९६); मुसुमूरइ (४. १२३.) ३० [३] नामधातु-सुहावइ ( ६. ७.); धंधइ (१३. ७.); जगडइ
(१३. २०.); हकारइ (३. १४९.); जयजयकारइ (२. ५.)
बहिरइ (६. ६७.) इ० । [v] चि-प्रकारना नामधातु-समरसिहूवाहं (७. ८६.) बंधिकिउ
(१३. ४८.) गोअरिहोइ (१४. गीत. ५.) [५] ध्वनिधातु-किलिकिंचइ (६. ५३.) खुसखुसइ (१३. ७.)
गिणगिणइ (१०. ३२.) गुमगुमइ (२. १३५.) घवघवह (१. २४.) रुहवुहइ (५. ११५.) रुहुरुहइ (६. ५२.) कुलु
कुलइ (६. ५२.) करयरइ (१२. १३.) इ. ६ ६९. सामान्यतः धातुना जुदा जुदा कालनां रूप नीचे प्रमाणे छे: