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४७ द्वितीया. पुत्तु (१. ८५.) पुत्तं (२. ८.) पुत्तहो (१. १०७.) पुत्तं (६. २९) तृतीया. पुत्तेण (१. १०२.) पुत्तिण (१. ११५.) पुत्ते (१. ८०.) पुत्ते
(१. १०.) पुत्ति (६. १६.) पुत्ति (५. ७६.) पुत्ता (५.१००)
पुत्तेणं (४. १६९) पंचमी. पुत्तहें (१. ११३) पुत्तहु (५. ३४) पुत्तहो (.. १७५) चतुर्थी-षष्ठी. पुत्तस्स (६. १६४) पुत्तस्सु (१४.गीत.५) पुत्तहो (१.१.४.
१०५.) पुत्तहु (९. ३६.) । सप्तमी. पुत्ति (६. ५.) पुत्ते (१. ११४.) पुत्तई (४.२७४.) पुत्तर (७.
____७८.) पुत्तए (१. १.) पुत्तम्मि (६. १५८.) संबोधन, पुत्त (३. १८२.) पुत्ता (७. २८.) अनेकवचन:प्रथमा. पुत्त (१. ७.) पुत्ता (१. ९६.) द्वितीया पुत्त (२.९.) पुत्ता (२. ९.) तृतीया पुत्तहिं (१. ६९) पुत्तहि (१. ५८.) पुत्तेहि (१. ५७.) पुत्तहिं
(१. ५७.) पुत्तिहिं (१. १२०.) पुत्तिहि (१. ५८.) । पंचमी [पुत्तहुं], पुत्तहं (९. १९.) चतुर्थी-षष्ठो पुत्ताणं (४. २३१.) पुत्ताण (६. १६५.) पुत्तहं (१. ७३)
पुत्तह (७. ६.) पुत्ताहं (७. ९.) । सप्तमी पुत्तहिं (५. १५३.) पुत्तेसु (६. ७८.) पुत्तिहिं (३.२३.) संबोधन पुत्तहो (१. ९४.) पुत्तहु (१३. ३९; ३. १८१.)
(क) उपरनां रूपाख्यानोमां पुत्तो, पुत्तं, पुत्ताणं, पुत्तम्मि चोक्खा महाराष्ट्री प्राकृतनां रूप छे.
_(ख) पांचमी, षष्ठी विभक्ति वच्चे पण संभ्रम थई गयो छे. विभक्तिव्यापारनी निरंकुशता जोवी होय तो प्रस्तुत ग्रंथमां घणे स्थळे मळी आवशे, दा. त. उद्धरण १. कडवड. १२. वपरायलां रूपाख्यानो पण ते ज बतावे छे.
(ग) अनादर षष्ठीना प्रयोगर्नु उदाहरण: पेक्खंतहं रायहं मुच्छ गय । (३. ७२.) सति सप्तमी: विमले विहाणए कियए पयाणर उययइरिसिहरे रवि दीसइ । (१. 1.). बीजे स्थळे पहं जीवंतएण