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४८ महु एही भइय अवस्था । (३. ९०.) अहिं सप्तमीने स्थाने तृतीया योजी छ, जे बतावे छे के तृतीया अने सप्तमी वच्चे बहु ज संभ्रम थएलो होवो जोईए.
(घ) उपरनां रूपाख्यानोमां नासिक्यता (Nasality) प्रत्येना दुर्लक्षथी तथा ऍ अने इ, तेम ज ओ अने उनी भ्रामकताथी नूतन रूपो अस्तित्वमा आव्यां छे.
(च) उद्धरण १२. अने १३. अनुक्रमे कण्ह अने सरहना दोहाकोशमाथी लेवामां आन्यां छे. तेमां केटलांक खास रूपाख्यानो देखाय छे. ते मुख्यत्वे करीने बोलो विशेषो (Dialectal Peculiarities) अने अर्वाचीनतानां चिह्न छे. आ संबंधी चर्चा प्रस्तुत उद्धरणनी टिप्पणीमां आपेली प्रस्तावनामां करवामां आवेली छे ते जोवी.
(छ) केटलीक वार छंदनी खातर विभक्ति प्रत्ययोनो त्याग करवामां आवे छे. दा. त. जिणजम्मण अमर पराइय (२. १८.) सरिपवाह मिहणइं णासंतइं (१. ८.) वाहि मिच्छ तं जणं दुरक्खसेणं खद्धयं (६. ९१.) इ. ६ ४९. अकारान्त नपुंसकलिंगी नामनां रूप.
फल.
अनेकवचन प्रथमा-द्वितीया. फलु (१. ३६.) फलाइं-इ (१. १२७.)
फल (१३. १९.) फलइं-इ (१. ३७.) अवशिष्ट रूप अकारान्त पुल्लिंगी नामनां रूप प्रमाणे थाय छे. ६ ५०. इकारान्त अने उकारान्त नामनां रूप (पुल्लिंग भने नपुंसकलिंग)
पुल्लिंग अने नपुंसकलिंग वच्चे काइ पण फेर नथी. नपुंसकलिंगमा वारिहंवारीइं के महुई-महूइं प्रथमा, द्वितीया अनेकवचनमां शास्त्रीय दृष्टिए होय; परन्तु प्रस्तुत ग्रन्थमां ते प्रयोजित नथी. ___ मूळे य इ अने उ अन्तवाळां नामो ज ओछां वपरायलां दृष्टिगोचर थाय छ; अने वळी तेमां पण ते नामोने घणी वार य <क स्वार्थ प्रस्यय लगाडी अकारान्त नाम जेवां रूपाख्यानो तेनां करवामां आवे छे. दा. त. सम्माइट्ठिउ (५. ५४.) जोइया (७. ५९.) जोइय (७. ६४.) णाणियहं
एकवचन