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क्रीडा, सियय-सिकता (१. ८६.) पडिम-प्रतिमा (१. ८५.) पुज्ज =पूजा (१. ९०); वेणि वेणी (३. २४.) मालइ-मालती (३. ३१) सयलिंधि-सैरन्ध्री (३. ३२.) किंकरि-किंकरी (३. ३३.) जवल्ले ज दीर्घ स्वर राखवामां आवे छे. दा. त. जिभा-जिह्वा (३. ८.) कोइ धार
कारान्त इस्वित करी तेमां इ ऊमेरी, इकारान्त करवामां आवे छे. दा. त. णिसि-निशा (१. २.) कहि-कथा (३. १८५.).
___ आ प्रमाणे पुल्लिंग, स्त्रीलिंग अने नपुंसकलिंगमां, अ, इ अने उ-भन्तनां ज नाम होय छे.आ, ई, ऊ-अन्तमां स्त्रीलिङ्गी नामो विकल्पे आवे छे.
४५. अपभ्रंशमां बेज वचन होय छे-एकवचन अने अनेकवचन. दो, बे ए बे द्विवचननां रूप सिवाय अपभ्रंशमां द्विवचन नथी.
६४६. सामान्य रीते अपभ्रंशमां जाति संस्कृतने अनुसरे छे. परंतु तेमांय अव्यवस्था तो छे ज. तेटला ज माटे सि. हे. ८. १. ४४५ मां लिंगने अप. भ्रंश विषये अतन्त्र कयुं छे. दा. त. कडक्खइं-कटाक्षान् (६. ९९.), देसा-देशान् (६. १००), आरंभई-आरंभान् (६. १०७.) इ.
४७. संस्कृतनी सरसामणीमां पाली अने प्राकृतमा विभक्तिओनो हास थएलो छे. पालीमां पण चोथी अने छही विभक्तिओनो मेद अदृश्य यतो जाय छे. अपभ्रंशमां तो विभक्तिओनो हास एथी पण अधिक छे. प्राकृतमां देखा देतो चतुर्थी अने छट्ठीनो भेदाभाव (वररुचि. प्राकृतप्रकाश ६. ६४. चंड. २. १३.) अपभ्रंशमां तो छे ज. चतुर्थी भने द्वितीयानो भेद कोइ वार नष्ट थाय छे. (जुओ अ. पा. टिप्पणी. १. ९४-९७-१०७). सप्तमी अने तृतीयानां एकवचन अने अनेकवचननां रूप केटलेक दरज्जे सरखां बनी जाय छे. प्रथमा अने द्वितीयानो भेद पण झाझो रहेतो नथी. कोइवार पंचमी अने षष्ठीनां एक वचन पण सरखां थई जाय छे. आ बधी बाबतो नीचेनां रूप उपरथी स्पष्ट थशे.
६ ४८. अकारान्तनामनां रूप (पुल्लिंग) नीचे एक ज नाम लईने सुगमता खातर रूप आपवामां आवेलां छे.
___पुत्त (पुल्लिंग) एकवचन:प्रथमा. पुत्तु (१. ४.) पुत्त (१. ६.) पुत्तो (५. ५३.) पुत्तउ (१.६१.)
पुत्तउं (१. ३.)