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अपभ्रंशव्याकरण
१. वर्णमाला अपभ्रंशभाषामां नीचे प्रमाणे स्वरो अने व्यंजनो वपराय छे:६१. स्वर-अ, इ, उ, ए, ओ (हस्व)
आई ऊ ए ओ (दीर्घ) (क) ऋ-सि. हे. ८ । ४ । ३२९ ।. तृणु, सुकृदु नोंघे छे; परंतु प्रस्तुत ग्रंथमां तेवां उदाहरणो देखा देतां नथी.
(ख) - - प्रस्तुत ग्रंथमां अनुस्वारना बे प्रकार मालम पडे छे. एक वर्णात्मक अने बीजो ध्वन्यात्मक. वर्णात्मक. अनुस्वार अपभ्रंशमां अनुनासिकमांधी भाब्या छे. एटले करीने तेवा अनुस्वारयुक्त स्वर द्विमात्रिक गणाय छे; ज्यारे ध्वन्यात्मक अनुस्वारयुक्त स्वर एकमात्रिक होय छे. दा. त. वसंतहो (१.२.१.) भुंभल (१ २२.) गंठिवाल (१.१७.) इ०मां अनुस्वार द्विमात्रिक छे; ज्यारे मिहुणइं, (१.८.) सिहरेहिं (१.१६.) इ०मां एकमात्रिक अनुस्वार छे.
सू अने ह् नी पूर्वे आवेला अनुस्वारो, अनुनासिकमांथी ज आवेल होई, वर्णास्मक अनुस्वार गणवा ज योग्य छे, अने ते द्विमात्रिक छे; जो के आवा अनुस्वारोनो उच्चार पछी आवता ऊष्माक्षरना रागथी ऊष्मित थई जाय छे, एटले ध्वन्यात्मक अनुस्वार जेवो तेनो उच्चार लागे छे.
(ग) ऍ अने ओ (हस्व), इ अने उ ना उच्चास्नी लढणथोः अस्तिस्वमां आव्या छे अने ते एकमात्रिक छे.संस्कृतमां ए,ऐ केओ,औ होय अने तेना पछी संयुक्त व्यंजन आवे, तो ते ए, ऐ अने ओ औ नो ऍ अने ओ थई जाय छे. दा. त. जंतिऍ, तुरंतिऍ (१. २३.) निउड्डेवि, अवरुडेवि (१. ४६.) घरे, करें ( ३. १८२. परनी निम्ननोंध; २. १२६. परनी निम्ननोंध. ) दुमयहो (३. ५७.) ऍक्क (इक्क पण लखाय छे) सोक्ख, जोव्वण (१.
६२. व्यंजन - क ख, ग, घ. ( कंठ्य ) । च, छ, ज, झ. (तालव्य)। ट, ठ, ड, ढ, ण. (मूर्धन्य)। त, थ, द, ध, न.(दन्त्य)। प, फ, ब, भ, म. (औष्ठ न्य)। य, र, ल, व. ( अंतःस्थ )। स, ह.. (ऊष्माक्षर)।