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४. टिप्पणः
१ णायणाय [शाताज्ञातं] संस्कृतछाया न्यायान्यायं पण थई शके. सरखावो. चारैः पश्यन्ति राजानः ।
३ उइय ए मूलना उइउ उपर सुधारो छे (प.) उयय वांचे छे, जे मूळ परना सुधाराने अनुमोदन आपतो पाठ छे अने प्राह्य छे.
४-६ व्यतिरेकालंकारे करो कवि वसुदेवनी उत्कृष्टता वर्णवे छे. " जाणे सहस्रनेत्र विनानो इन्द्र, कुसुमना शर विनानो जाणे जाते ज कुसुमायुध (=कामदेव ), जाणे खाराश विनानो लावण्ययुक्त रत्नाकर ( = समुद्र), कपट विनानो जाणे दामोदर, राहुथी अग्रस्त जाणे सूर्य, आखा जगत्ने संक्षोभ पमाडनार जाणे जिनदेव.
५. णं अक्खारु सलवणु रयणायरु मूळमां अखारु करी सलघणुने घटित कय छे. जो अक्खारु करीए तो सलेॉणु के सलणु वांचवें ओईए. आ पंक्तिमा व्यतिरेक अने विरोधाभास ए बे अलंकारोनो संकर छे.
१. अमलदेहु णावइ उज्जोयणु - (प.) अमलदेहु णावइ उग्गउ इणु वांचे छे. छापेला मूळ पाठनो अर्थ " जाणे राहुथी ( मलदेहथी) अप्रस्त सूर्य." एम अर्थ थशे. (प.) प्रमाणे अर्थमां तो कांइ फेर पडतो नथी; 'जाणे राहुथी अग्रस्त सूर्य ऊगेलो होय तेवो. इणु-इनः सूर्य. उज्जोयणु = सूर्य जुओ. पा. स. म.
७. सिरि (प०) सिर. परन्तु सिरि अर्थनी दृष्टिए उत्तम छे. ८. चत्तरि (प.) चच्चरि...
९ एकावली अलंकार. 'ए पुरुष नहि के जेणे दृष्टि नाखी नथी अने ए दृष्टि नथी के जे एना तरफ वळी नथी.'
१० मणुअ सुधारेलो पाठ, मूळ अने (१०) मणुउ. सचरंतु ने बदले संचरंतु वांचो.
१२ तिलु तिलु - 'जरा जरा' आ शब्दनो बीजे वपराश मळयो नथी,
१३ कालंबिणि (प०) कालंबिणि सरखावो दे. ना. २. ५९. तणुघणेसु कालिंबो । सरखावो मदीयमतिचुंबिनी भवतु काऽपि कादंबिनी । कादंबिनी = मेघलेखा.
१४ वम्मई आदि म् = व १५. णीसासि (प०) णीसासें