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( १४ ) आ यादवोने शोक
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सर्वज्ञनुं बोल्युं मिथ्या थतुं
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यादवने आनंद थाय छे; अमें एमनां वचनामृतो सांभळी सांभळी तेमने अभाव नथी थइ जतो. (११) बलदेव प्रश्न पूछे छे, आ द्वारकानो क्यारे विनाश थशे ? " नेमिनाथ उत्तर दे छे, आजथी बारमे वर्षे . " ( १२ ) बलदेव फरी प्रश्न पूछे छे, " त्यारे कृष्णनुं शुं थशे ? " नेमिनाथ जवाब दे छे " मद्यने ली भने द्वैपायनना शापथी द्वारामतीनो विध्वंस थशे; कौशांबीवनमां जशे ज्यां जरत्कुमारना हाथे तेमनुं मृत्यु कृष्णनां जन्मांतरो अने मोक्ष क्यारे थशे ते नेमिनाथ कहे छे. सांभळी बलदेवनुं मुख मेंस जेवुं कालुं थई गयुं अने बधा य था लाग्यो. (१५) प्रद्यम्न चिंता करे छे. नथी. यादवोनो तथा द्वारकानो पूरो विनाश थशे. आम संकल्पविकल्प करी कांचनमाला सहित तेणे तप आदर्यु. (१६) भानुकुमार, बीजा यादवो अने कृष्णनी राणीओए पण प्र म्ननी पाछळ दीक्षा लीधी. ( १७ ) बधा जनोए जातजातनां व्रत लीधां, तेनुं वर्णन आ कडवामां करवामां आव्युं छे. (१८) द्वैपायनने पोता थकी आ सर्व विनाश थशे, एथी चिंता थवा लागी एटले ते पूर्वदेशमां गयो अने त्यां तप करवा लाग्यो. (१९) जरत्कुमार पोताने हाथे ज कृष्णनो घात थशे एम विचारी पोतानां धनुष्य बाण लई दूर वनमां चाल्यो गयो. (२०) आ प्रमाणे थवा श्री कृष्णने बधुं शून्य लागवा मांडयुं. बलदेवना सारथि सिद्धार्थे एटलामां बलदेवनी आज्ञा मागी. (२१) बलदेवे अनुज्ञा आपी अने सिद्धार्थे घोर तप आदर्यु. बलदेव अने कृष्ण नेमिनाथने नमीने त्यांथी गया. अने राजकाज छोड़ी शोकनिमग्न थया. (२२) नेमिनाथनी धर्मप्रवृत्ति विविध प्रकारे वर्णवी छे. (२३) (२४) आ प्रमाणे प्रद्यम्न इत्यादि मुनिओ नेमिनाथ समक्ष तप आचरखा लाग्या अने सर्वे जनो भविष्यना क्लेशथी पीडित थई हर्ष अने विषादने पाम्या. (२५)
४. छंदोरचनाः
( १३ ) पछी कृष्ण
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थरों.
त्यार पछीन
आखु य उद्धरण भ्रष्ट छे; एटले छंदनो मेळ वारंवार तूटे ते स्वाभाविक छे. उद्धरणने मधाळे प्राकृतगाथा छे, सामान्य रीते गाथा १२÷१८। ११+१५॥ मात्राना मेळे होय छे प्रस्तुत गाथामां १२+१६ । ११+१४ ॥ मात्राओ छे. थानो अर्थ तो स्पष्ट छे; पण छंदनी दृष्टिए ते भ्रष्ट होवा वधारे संभव छे.
आखा उद्धरणमां २५ कडवक छे. आखा संधिने उद्धरण तरीके लेवामां आव्यो छे. आदिम आखा संधिनो एक ध्रुवक छे. दरेक कढवकना आदिमां