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उ प्रथमा अने द्वितीया एकवचनने अन्ते (९) तृतीया एकवचनने अन्ते ए दा. त. खग्गे पहरसि; खग्गेन पण थाय (३) भ्यः-हं के हुं दा, त. घरहुं पलिदु. रुक्खहं पडिदु (४) छट्ठी बहुवचन-हं के हुँ (५) किम् जेवा सर्वनामनुं हं आगळ काहं अने काणं (6) त्वम्-तुङ्ग दा. त. तुङ्ग सर्वविद्याप्रवीणु. (५) अहम् हुं, अम्मि, मम (८) ममन्महुँ (९) यथा-जिध अने तथा-तिध. मार्कण्डेय ढक्कीनु दृष्टांत टांके छ:-राउ असमसमरैकमल्ल मअणमणाहरदेहसोहु सकलशस्त्रास्त्रविद्याप्रवीणु । भा उदाहरण तो सामान्य अपभ्रंश जेवू ज छे. वे चार विशिष्ट प्रयोगो सिवाय स्वास अपभ्रंशथी जुदी पडती कोइ भाषा होय एवी विशिष्टतामो तो टाकीमा नथी ज, माथुरनी भाषाथी मार्कण्डेयनी टाकी जुदी छे.
आपणा उद्धरणमा आपेली ढक्कीमां आ प्रमाणे विशिष्ट लक्षणो देखा दे छे. (१) प्रथमा एकवचनमा उ (२) भवदि अने संभवदि शौरसेनीना जेवां रूपो. (३) हु-स्खलु (४) छट्ठी एकवचनमा स्स रूप. (५) से-तस्य महाराष्ट्री अने अर्धमागधीमां देखा देतुं रूप. आ उपरांत बीजां लक्षणो जणातां नथी. आटला उपरथी भाषानुं स्वरूप नक्की करवू मुश्केल छे. वळी भाऱ्या कडवं एक वैदग्ध्य देखाडवा खातर ज लखेलुं छे; एटले मूळगत तत्त्वो माछा सांपडे छे.
मृच्छकटिक, प्राकृतसर्वस्व के आपणा उद्धरण परथी भा भाषामां खास तत्त्वो कयां होवां जोईए ए नक्की करवं मुश्केल छे. प्रो. पीशल G. P. Einleitung 26. मां मृच्छकटिकनी ढक्की उपर टीका करता कहे छे, "शौरसेनी अने मागधी प्रमाणे ज, ढकीनी बाबतमा हाथप्रतोना पूरावा विश्वनीय नथी; अने वळी ढक्कीन साहित्य एटला ओछा प्रमाणमा छे के ए भाषा केवी हशे तेने माटे कोइ पण प्रकारनी चोखवट थई शके एवी नथी." ___आ भाषानुं नाम ढक्की हशे ? प्रो. पीशल G. P. Ein. 26. मां कहे छे के ढक्की ए पूर्वबंगालना ढक्का उपरथी हशे. प्रो. पीशलनु मानवं भूलभरेलुं छे. कदाच ते मृच्छकटिकनी हुक्कीनी मागधी असर परथी था अनुमान बांधवा दोराई गएला होगा जोइए. प्रीअरसने ( J. R. A. S. 1918. P. 875-883 ) एम बताव्युं के आ भाषानुं खरं नाम टाक्की होवु जोईए अने ते भाषा अर्वाचीन रजपुतानाना ईशान प्रदेशमा एटले जयपुर, टोंक भने पंजाबना अग्निकोणमा बोलाती होवी जोईए. प्रीभरसनना भभिप्राये,